SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन-दर्शन ११५ जो वैदिक श्रौर श्रौपनिषदिक उद्धरणों से समलंकृत है । इस प्रकार पंडित जी का सम्पादन और अनुसंधान कार्य एक दृष्टि से पूरे भारतीय दर्शनशास्त्र पर हुआ है । जैनदर्शन का तुलनात्मक अध्ययन करने की नवीन दिशा का निर्माण कर उन्होंने भारतीय वाङ्मय की बहुत बड़ी सेवा की है। इस क्षेत्र में पंडित जी की परम्परा के निभाने वाले दो और मुख्य व्यक्ति हैं — पं० महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य एवं पं० दलसुख मालवरिया | पं० महेन्द्रकुमार जी के सम्पादकत्व में प्रमेयकमलमार्तण्ड, न्यायकुमुदचन्द्र, न्यायविनिश्चय विवरण, तत्त्वार्थ की श्रुतसागरी टीका श्रादि कई ग्रन्थ प्रकाशित हुए । प्रमेयकमलमार्तण्ड जैन प्रमाणशास्त्र का उत्कृष्ट ग्रन्थ है । पंडितजी ने इसका सम्पादन तुलनात्मक टिप्परादि देकर किया है । इस ग्रन्थ के सम्पादन में काफी परिश्रम करना पड़ा है | इसी प्रकार न्यायकुमुदचन्द्र का सम्पादन भी काफी महत्वपूर्ण है । इन दोनों बृहत्काय ग्रन्थों की प्रस्तावनाएँ ऐतिहासिक एवं दार्शनिक ' दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण हैं । न्यायविनिश्चयविवरण में कलंक के मूल और वादिराज के विवरण की अन्य दर्शनों के साथ तुलना की गई है । प्रस्तावना में सम्पादक ने स्याद्वाद सम्बन्धी अनेक भ्रमों के निरसन का सफल प्रयत्न किया है । तत्त्वार्थं की श्रुतसागरी टीका की प्रस्तावना में अनेक दार्शनिक एवं अन्य विषयों की विशद चर्चा की गई है। उसका लोकवर्णन श्रौर भूगोल भाग विशेष महत्व का है । इस भाग में जैन, वौद्ध और ब्राह्मण परम्परा के मन्तव्यों की तुलना की गई है । पं० दलसुख मालवणिया द्वारा सम्पादित न्यायावतार - वार्त्तिक- वृत्ति जैन न्याय का प्राचीन एवं महत्वपूर्ण ग्रन्थ है । इसकी मूल कारिकाएँ सिद्धसेनकृत हैं और उन पर पद्यवद्ध वार्तिक और उसकी गद्य वृत्ति दोनों शान्त्याचार्य कृत हैं, जैसा कि हम पहले लिख चुके हैं । सम्पादक पं० दलसुख मालवरिया ने इसकी विस्तृत भूमिका में ग्रागमयुग से लेकर एक हजार वर्ष तक के जैनदर्शन के प्रमाण- प्रमेय विपयक चिन्तन एवं विकास का ऐतिहासिक व तुलनात्मक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण विवरण दिया है । ग्रन्थ के अन्त में विद्वान् सम्पादक ने अनेक
SR No.010321
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1959
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy