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________________ दीन दान और उसका प्राधार विपयों पर टिप्पण लिन्चे हैं। भारतीय दर्शन के तुलनात्मक अध्ययन के लिए उनका विशेष महत्व है । ये ग्रन्य भारतीय विद्याभवन-बम्बई में प्रकागित हुए हैं । पं० मालवरिगयाजी की दूसरी कृति गगाधरवाद है । यह ग्रन्थ गुजरात विद्यासभा-अहमदावाद की ओर से प्रकाशित हया है। उक्त ग्रन्थ विरोपावश्यक भाष्य के एक भाग के श्राधार से गुजराती भाषा में लिखा गया है। इसका मूल पाठ जंगलमेर भंडार की सबसे प्राचीन प्रति के आधार से तैयार किया गया है। इसकी प्रस्तावना तुलनात्मक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। इन ग्रयों के अतिरिक्त जैनसंस्कृति संगोधन मंडल वनारस से प्रकाशित भागमयुग का अनेकान्तवाद, जैन पागम, जैनदार्शनिक साहित्य का सिंहावलोकन आदि पुस्तकें लेखक की विद्वत्तापूर्ण छोटी-छोटी कृतियां हैं। प्रो० ए० एन० उपाध्ये द्वारा सम्पादित प्रवचनसार और प्रो० ० चमवर्ती सारा अनूदिन एवं सम्पादित समयसार भी विशेष महत्व पते । प्रवचनसार की लम्बी प्रस्तावना ऐतिहासिक एवं सानिक दृष्टियों ने भी विमोप महत्वपूर्ण है । यह प्रस्तावना अंग्रेजी में । समयमार की भूमिका जैनदर्शन के महत्वपूर्ण विषयों से परिपूर्ग हीरालाल जैन ने पदमण्डागम धवला-टीका के सभी भागों पानपादन कर लिया है। पं०दरवारीलाल कोटिया कत प्राप्तपदीक्षा का हिन्दी अनुवाद भी एक अच्छी कृति है । पूज्यपादकत तत्वावंनमकीन मिति टोना का नंक्षिप्त संस्करण पं० चैनसुखदानजी में संचार निया शोर इनका सम्पादन किया है मी० एम० मलिनाने । एस मरकामा की जो नवमे बड़ी विशेषता है वह है १ में दिये गए एम गौ हपृट के अंग्रेजी टिप्पण। ये टिप्पण पितालमा कई परिधान नयार किए गए हैं। प्रारम्भ में भूमिरा भी नामी भोलिपी गई। भारतीय नातव के. गुमिका दिनाना ना ने छ जनसूत्रों के विषय as part 13797 Some Canonical.lajna Sueras से मामलामा मोनापटीकी दम्बा माता का बोर यो ने नमत्रों ने पवन झा दिला का
SR No.010321
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1959
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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