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________________ जैन-दर्शन और उसका आधार प्रागमों का वर्गीकरण : . अंगप्रविष्ट और अंगवाह्य आगमों का उल्लेख हो चुका है । १२ अंग अंगप्रविष्ट हैं और शेष ग्रन्थ अंगबाह्य । इसके अतिरिक्त निम्न वर्गीकरण विशेष प्रसिद्ध है :-- (१) अंग : . १-आचार, २-सूत्रकृत, ३-स्थान, ४-समवाय, ५-उपासक दशा, ६-भगवती, ७-ज्ञातृधर्मकथा, ८-अन्तकृद्दशा, ६-अनुत्तरौपपातिक दशा, १०-प्रश्नव्याकरण, ११-विपाक, और १२-दृष्टिवाद (जो उपलब्ध नहीं है) (२) उपांग : . १-औपपातिक, २-राजप्रश्नीय, ३-जीवाभिगम, ४-प्रज्ञापना, ५-सूर्यप्रज्ञप्ति, ६-जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, ७-चन्द्रप्रज्ञप्ति, ८-कल्पिका, ६-कल्पावतंशिका, १०-पुष्पिका, ११-पुष्पचूलिका, १२-वृष्णिदशा । (३) मूल : १-आवश्यक, २-दशवैकालिक, ३-उत्तराध्ययन, ४-पिण्डनियुक्ति अथवा अोधनियुक्ति । (४) चूलिका सूत्र : १-नन्दी सूत्र, २-अनुयोगद्वार सूत्र । (५) छेद सूत्र : १-निशीथ, २-महानिशीथ, ३-बृहत्कल्प, ४-व्यवहार, ५-दशाथ तस्कन्ध, ६-पंचकल्प। (६) प्रकीर्णक : १-चतुःशरण, २-यातुरप्रत्याख्यान, ३-भक्तपरिज्ञा, ४-संस्तारक, ५-तन्दुलवैचारिक, ६-चन्द्रवेध्यक, ७-देवेन्द्रस्तव, ८-गणिविद्या, ह-महाप्रत्याख्यान, १०-वीरस्तव । उपरोक्त ग्रन्य जैन परम्परा की बहुत बड़ी निधि हैं। इनकी भाषा प्राकृत है। कुछ सूत्र ऐसे भी हैं जिनके कर्ता का नाम मिलता है। उदाहरण के लिए दशकालिक के कर्ता शय्यंभवाचार्य हैं, प्रज्ञापना श्यामा
SR No.010321
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1959
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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