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________________ f ( ७ ) पाप तत्व - सामान्य रूप से पाप तत्व के भी दो भेद होते हैं [१] द्रव्य पाप अर्थात् व्यवहार पाप [२] भाव पाप अर्थात् निश्चय पाप उत्तर भेद से पाप का बंध १८ प्रकार से होता है :[१] प्राणातिपात-हिंसा करने से [२] मृषावाद-झूठ बोलने से [३] अदचादान - चोरी करने से [४] मैथुन - स्त्री संसर्ग से [५] परिग्रह - धन आदि के संग्रह और ममत्व से [६] क्रोध से [७] मान से [८] माया से [९] लोभ से [१०] राग से [११] द्वेष से [१२] कलह से [१३] अभ्याख्यानदूसरों पर मिथ्यारोपण करने से [१४] पैशुन्य-चुगली खाने से [१५] परपरिवाद - दूसरों की निन्दा करने से [१६] रति भरति-भोगों में प्रीति एवं संयम में अप्रीति रखने से [१७] माया मृपावाद - कंपट सहित झूठ बोलने से [१८] मिथ्या दर्शन शल्य-असत्य मत की श्रद्धा होने से । आश्रय तत्व --- आश्रव तत्व के दो भेद - [१] द्रव्य आश्रव [२] भाव आश्रव तथा ५ भेद - १ - मिथ्यात्व २ - अवत ३ - प्रमाद ४ - कपाय एवं ५ - अशुभ योग | उत्तर भेद के २० प्रकार : १. मिथ्यात्व - कुगुरु, कुदेव तथा कुधर्म पर श्रद्धा करना २. अव्रत - सावद्य कार्य (पाप युक्त कार्य) में संलग्न रहना तथा हिंसा युक्त कार्यों में प्रवृत्त होना
SR No.010317
Book TitleJain Tattva Shodhak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTikamdasmuni, Madansinh Kummat
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Swadhyayi Sangh Gulabpura
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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