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________________ ३- साइए अपजवसिए-यह भांगा समकित आदि की अपेक्षा, समकित संवर इत्यादि निश्चय संवर सिद्धों में भी है । व्यवहार संवर चारित्र पालने की अपेक्षा सिद्ध में नहीं है क्योंकि चारित्रावरणी कर्म का क्षय हो गया है । अतः अपायी, अवेदी, अलेशी अयोगी, इत्यादि गुण सिद्धों में हैं इस अपेक्षा से । ४- साइए सपज्जवसिए-यह भांगा साधुपन, श्रावकपन, समकित व्रत पच्चक्खाण दया आदि शुभ परिणाम की अपेक्षा । निर्जरा तत्त्व में तीन भांगे मिलते हैं१- अणाइए अपज्जवसिए-यह भांगा अभव्यादिक के समय समय पर अकाय निर्जरा होती है इसलिये अभवि में मिलता है। २- अणाइय सपज्जवसिए--यह भांगा भवि के अकाम निर्जरा होती है इस अपेक्षा भवि में मिलता है। . ३- साइए अपज्जवसिए--यह भांगा शून्य है । ४.- साइए सपज्जवसिए-यह भांगा सम्यक दृष्टि की सकाम निरा। बन्ध तत्त्व के तीन भांगे१- अणाइए अपज्जवसिए-यह भांगा अनेक जीवों की अपेक्षा तथा अभव्यादि की अपेक्षा । ..
SR No.010317
Book TitleJain Tattva Shodhak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTikamdasmuni, Madansinh Kummat
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Swadhyayi Sangh Gulabpura
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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