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________________ (१५३) २ - अगाइए सपज्जबसिए - यह भांगा भवि जीव के कर्म क्षय करने की अपेक्षा मिलता है । ३ -- साइए अपज्जबसिए - यह भांगा शून्य है । ४ - साइए सपज्जवसिए - यह भांगा सब संसारियों में बंध की अपेक्षा मिलता है । मोक्ष तत्व में चार भांगे १ - अणाइए अपज्जवसिए - यह भांगा बहुत जीवों के समय समय पर कर्म टूटते हैं इस अपेक्षा तथा एक एक अभव्यादि की अपेक्षा तथा सर्व सिद्धों की अपेक्षा । २ - अणाइए सपज्जवसिए - यह भांगा भवी में । ३ - साइए अपज्जव सिंए ये सिद्धपन की अपेक्षा | ४ - साइए सपज्जबसिए - यह भांगा एक एक प्रकृति की अपेक्षा | पुण्य, पाप, आश्रव, निर्जरा तथा बंध इन पांच तत्वां में तीन भांगे मिलते हैं । ॥ इति नित्यानित्य द्वारं समाप्तम् ॥ - १५ गुणस्थान द्वार जीव तत्व में चौदह गुणस्थान तथा मिद्वपन होता है* अजीव तत्व शरीर की अपेक्षा चौदह गुणस्थान तक है । पुण्य तत्व पुण्य बंध की अपेक्षा तेरहवें गुणस्थान तक है भोगने की अपेक्षा चवदहवें गुणस्थान तक है । पाप
SR No.010317
Book TitleJain Tattva Shodhak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTikamdasmuni, Madansinh Kummat
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Swadhyayi Sangh Gulabpura
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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