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________________ (१५१) पुण्य तत्त्व में तीन भांगे १ - अणाइए सपज्जव सिए - यह भांगा संसार में सब' जीवों की अपेक्षा मिलता है क्योंकि पुण्य को बांधने वाले, भोगने वाले जीव शाश्वत (नित्य) है तथा पुण्य का स्कन्ध भी शाश्वत है । ―― २ - अणाइए सपज्जबसिए - यह भांगा भवी जीव में पुण्य के बन्ध व उदय की अपेक्षा है । ३ - साइए अपज्जबसिए - यह भांगा शून्य है अर्थात् पुण्य तत्त्व में नहीं मिलता है । ४ - साइए सपज्जव सिए - यह भांगा एक जीव के एक बंध की अपेक्षा तथा एक स्कन्ध के पुण्यपने रहने की अपेक्षा है । पाप तत्त्व एवं आश्रव तत्त्व में तीन भांगे पुण्य तत्त्व के समान है । संवर तत्त्व में चार भांगे मिलतें हैं १ - अणाइए अपज्जवसिए - यह भांगा सब जीव की अपेक्षा संवर क्रिया करने वाले शाश्वत है | २ – अाइए सपज्जवसिए - यह भांगा द्रव्य संवर संसारी जीत्र में मिलता है इस अपेक्षा किसी २ में प्रतीत होता है ।
SR No.010317
Book TitleJain Tattva Shodhak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTikamdasmuni, Madansinh Kummat
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Swadhyayi Sangh Gulabpura
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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