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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षा नय भी वस्तु के द्रव्यांश का प्राही है। और व्यवहार नय पर्या यांश का ग्राही है । अतः दोनों ही नय वस्तु का आंशिक रूप का ग्राही है । इसलिय जिस प्रकार पर्यायांश का ग्राही व्यवहार नय मि है उसी प्रकार द्रव्यांश का ग्राही निश्चय नय भी मिथ्या क्यों नहीं ? तथा जिस प्रकार व्यवहार नय विकल्यात्मक है, उसी प्रकार निश्चय नय भी सविकल्पक है । व्यवहार नय का विधि रूप विकल्प है। और निश्चय नय का निषेध रूप विकल्प है ! इसलिये दोनों ही सविकल्पक है अतः विकल्प की अपेक्षा एक को मिथ्या एक को सत्य कहना यह भी उचित नहीं है। अथवा वस्तु स्वरूप निरंश है, वचन अगोचर है इसलिये वह वचन द्वारा कहने में न आवे है। इस कारण वह नय का विषय भी नहीं है वह अनुभव गम्य है। "सत्यं किन्तु विशेपो भवति स सूक्ष्मो गुरूपदेश्यत्वात् । अपि निश्चयनयपक्षादपरः स्वात्मानुभूतिमहिमा स्यात् ।। अर्थातठीक है परन्तु निश्चय नय से भी विशेष कोई है बह सूक्ष्म है इसलिये वह गुरु के ही उपदेश योग्य है सिवाय महनीयगुरु के उमका स्वरूप कोई नहीं बतला सकता बढ़ विशेष स्यात्मानुभूति की महिमा है इसलिये वह निश्चय नय से मी अनि नरम है और भिन्न है । अत: वह वस्तु स्वरूप निश्चय न्य के भी गम्य नहीं है इस कारण निश्चय नय का जानपणा भी अधूम ही है इसलिये वह भी अपरमार्थभूत हैं। "नस्माद् द्रव्य व्यवहार इव प्रकृतो नात्मानुभूतिहेतु स्यात् अयं मेऽहमस्य स्वामी सदवश्यम्भाविनो विकल्पत्वात् ।। ६५३ पंचाध्यायी अर्थात इसलिये व्यवहार नब के समान निश्चय नय भी स्वानुभूति करण नहीं है क्योंकि उसमें भी यह आत्मा है For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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