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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षा घट का प्रसंग श्रावे ऐसे दोय भंग ये भये अथवा चैतन्यशक्ति हो आकार है । एक ज्ञानाकार है एक झयाकार है। तहां यते जुड्या नाही ऐसा आरसाका, विना प्रतिविम्य आकारबत् तो ज्ञाना कार है तथा ज्ञयते जुड्या प्रतिविम्बभहित आरसाका आकारयत् ज्ञ याकार है। तह घटज्ञ याकाररूप ज्ञान तो घटका स्वात्मा है । घटका व्यवहार याही ते चले है तथा विना घटाकार ज्ञान है सों परात्मा है याते सर्व ज्ञय ते साधारण हैं। अतः घट ज्ञेयाकारकरि तो घट है विना घटाकार ज्ञानकरि अघट है । जो शयाकार भी घट न होय तो तिसके आश्रय जो करने योग्य कार्य है ताका अभाव होय । अतः ज्ञानाकारकरि भी घट होय तो पटादिकका आकार मा ज्ञानका प्राकार है सो भी घट ठहरे । ऐसे ये भी दोय भंग भए इन दोय दोय भंगां के अतिरिक्त इनके पांच पांच भंग और करने से सबके सात सात भंग हो जाते हैं। __ एक घट एक अघट ऐसे दोय भेद कहे ते परस्पर भिन्न नहीं है जो जुदे होय तो एक प्राधारपणा करि दोङके नामकी तथा दोऊ. के ज्ञानकी एक घट वस्तुविषै वृत्ति न होय घट पट वत तो परस्पर अविनाभावहोते दोऊ में एक का अभावही से दोऊका अभाव हो जाय तब इसके आश्रय जो व्यवहार ताका लोप होय इमलिये यह घट है सा घट अघट दाऊ स्वरूप है सो अनुक्रमकरि तो वचन गाचर है । परन्तु जो घट अघट दोऊ :स्वरूप को घट ही कहिये तो अघटका ग्रहण न होय अथवा अघटही कहिये तो घटका ग्रहण न होय इसलिये एकही शब्द करि एक काल दोऊ कहने में न आ ताते अवक्तव्य है तथा घट स्वरूप की मुख्यताकरि करा जो वक्तव्य सो युगपत् न कहा जाय ताकी मुयस्ता करि घट अवक्तव्य है तथा इसी प्रकार अघट भी अवक्तव्य है तथा क्रमकरि दोऊ कहे जायें युगपतू न कहे जाय इसलिये घट अघट दोऊ For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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