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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५२ जैमीमांसा की wani maan काका? यदि इतर आकारकरि घट होय तो आकारशून्यविषे भी घटव्यवहार की प्राप्ति आवे । ऐसे ये दोय भंग हैं । अथव रूपादिका संनिवेश जो रचनाविशेष आकार तहां नेत्रकरि घटग्रहण होय है। तहां व्यवहारविषे रूपको प्रधानकरि घटग्रहण कीजिये तहां रूप घटका स्वात्मा है और उसमें रसादिक है वह परात्मा है सो घटरूपकरि तो घट है । रसादिककरि अघट है । जातें ते रसादिक न्यारे इंद्रियनिकरि ग्राह्य हैं । जे नेत्र करि घटग्रहण कीजिये हैं तैसे रसादिक भी ग्रहण करें तो सर्वके रूपपणाका प्रसंग आवे इस हालत में अन्य इन्द्रियनिकी कल्पना निरर्थक होय क्योंकि रसादिककी ज्यों रूप भी घट ऐसा नेत्र नाहीं ग्रहण करे तो नेत्रगोचरता या घटमें न होय । ऐसे ये दोय भंग होय हैं । अथवा शब्द के भेदते अर्थका भेद अवश्य है। इस न्यायकरि घट कुट शब्दनिके अर्थभेद है । तातें घटनेते तो घट नाम है और कुटिलता ते कुटिल नाम है अतः तिसक्रियारूप परिणति के समयही तिस शब्दकी प्रवृत्ति होय है इस न्यायसे घटनक्रियाविषे कर्तापणा है सो ही घटका स्वात्मा है। कुटिलतादिक परात्मा है। तहां घटक्रियापरिणति क्षणही में घट है। अन्य क्रियामें अघट है जो घटन क्रिया परिहातिमुख्यताकरि भी घट न होय तो घटव्यबहारकी निवृत्ति होय अथवा जो अन्यक्रिया अपेक्षा भी घट होय तो तिस क्रियाकरि रहित जे पटादिक तिनिविषे भी घटशब्दकी प्रवृत्ति होय । ऐसे ये दोय भंग भयं । अथवा वटशब्द उच्चारणते उपजा जो घटके आकार उपयोग ज्ञान सो तो घटका स्वात्मा है तथा वाह्य घटाकार है सो परात्मा है वाह्यघटके अभाव होते भी घटका व्यवहार है सो घट उपयोगाकार करि तो घट है तथा वाह्याकारकरि अघट है। जो उपयोगाकार घटस्वरूपकरि भी अघट होय तो बक्ता श्रोताके हेतुफलभूत जो उपयोगाकार घटके प्रभावतें तिस आधीन व्यवहारका भी अभाव होय अथवा जो उपयोग से दूरवर्ती जो बाह्य घट भी घट होय तो पटादिकके भी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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