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________________ बाह्यकारणमीमांसा संस्थान और मन्दराकारादि अनादि परिणाम है। आदिमान परिणाम दो प्रकारका है-प्रयोगज और वैखसिक । वहाँ चेतन द्रव्यके औपशमादिक भाव कोके उपशम आदिकी अपेक्षासे होकर भी अपौरुषेय होनेसे वैनसिक ऐसा कहा जाता है। ज्ञान, शील और भावना आदि लक्षणवाला परिणाम आचार्यादि पुरुषोंके प्रयोगके निमित्तसे होता है, इस लिये प्रयोगज है । तथा अचेतन मिट्रोका घट संस्थान आदि परिण म कुलालादि पुरुषोंके प्रयोगके निमित्तसे होता है, इसलिये प्रयोगज है। इन्द्रधनुष आदि नाना परिणाम वैनसिक है। आगे अ० ५ सू० २४ में बन्धके प्रसंगसे लिखा हैविस्रसा विधिविपर्यये निपातः ॥११॥ प्रयोगः पुरुषकाय-वाङ्-मनःसंयोगलक्षण. ॥१२॥ पौरुषेय परिणामकी अपेक्षाका नाम विधि हैं और उससे विपरीत अर्थमें विस्रसा निपातन सिद्ध जानना चाहिये । तथा पुरुषके काय वचन और मनके संयोगका नाम प्रयोग है। जिस बन्धमें प्रयोग निमित्त हो उससे प्रायोगिक बन्ध लिया गया है तथा अजीव बन्धमे लाख-लकड़ी आदिका बन्ध लिया गया है। ___ इस प्रकार तत्त्वार्थवातिकमें प्रयोगके दो लक्षण दृष्टिगोचर होते है। यद्यपि सूत्र २२ में प्रयोगका लक्षण लिखनेके बाद जो उदाहरण दिये गये हैं उनसे तो सूत्र २४ में दिया गया प्रयोगका लक्षण ही फलित होता है। फिर भी यह सवाल बना ही रहता है कि सूत्र २२ में पुद्गल विकारको प्रयोग क्यों कहा? जब इस सवाल पर गहराईसे विचार करते हैं तो सूत्र २२ में दिये गये उदाहरणोंसे ही उसका समाधान हो जाता है । वहाँ सादि वैससिक जीव परिणामोंमें औपशमिक आदि भाव लिये गये है। लिखा है कि ये भाव कर्मोके उपशमादिकी अपेक्षासे होकर भी अपौरुषेय होनेसे वैनसिक हैं। इन्हें अपौरुषेय तो इस लिये कहा, क्योंकि इनकी उत्पत्तिमें पुरुषके काय, वचन और मनके प्रयोगकी अपेक्षा नहीं होती। और सूत्र २२ में प्रयोगके लक्षणके अनुसार इन्हें प्रायोगिक इसलिये नहीं कहा, क्योंकि कौका उपशम आदि पुद्गलका विकार होनेपर भी वे उन भावोंकी उत्पत्तिके करण निमित्त नहीं हैं, कर्मोदयके अभाव में या उनका क्षय हो जाने पर जीवके सम्यग्दर्शनादि परिणामोंके अनुकूल आत्मपुरुषार्थ करने पर वे स्वकालमें स्वय ही उत्पन्न हुए हैं। आगममें काललब्धिकी मुख्यतासे इनका कथन इसीलिये किया गया है।
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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