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________________ मिसंवाद इसलिए वह संसारमें ही गोते लगाता रहता है । यही कारण है कि सम्यग्दृष्टि जीव बाह्य निमितोंकी उठाधरोनी होकर एकमाच "अपने उपादानको सम्हाल करता है यह उक्त कथनका तरत्यय. प्रकार पण्डित प्रवर भैया भगवतीदासनीने इस अन्तरंग रहस्यको प्रकाशमें लानेके लिए यह संवाद लिखा है उसी प्रकार पण्डितवर बनारसीदासजीने भी इस विषयकी मीमांसा करते हुए सात दोहे लिखे हैं जो इस प्रकार है [ पण्डित प्रवर बनारसीदासजी ] निमित्तकी ओरसे अपना समर्थन गुरु उपदेश निमित्त बिन उपादान बलहीन । क्यों नर दूजे पांव बिन चलवे को आधीन || १॥ हो जाने था एक ही उपादान सों काज । थकै सहाई पौन बिन पानी मांहि जहाज || २ || जैसे आदमी दूसरे पैरके बिना चलनेके लिए पराधीन है उसी प्रकार गुरुके उपदेशके विना उपादान भी बलहीन है ॥१॥ अकेले उपादानसे ही कार्य हो जाना चाहिए था ( परन्तु देखने में तो ऐसा आता है कि ) पानीमें पवनकी सहायताके बिना जहाज थक जाता है ||२|| उपादानकी ओरसे उत्तर ज्ञान नैन किरिया चरण दोऊ शिवमग पार । उपादान निश्चय जहां तहां निमित्त व्यवहार || ३ || सम्यग्ज्ञानरूपी नेत्र और सम्यक्वारित्ररूपी पग ये दोनों मिलकर मोक्षमार्गको धारण करते हैं। जहाँ उपादानस्वरूप निश्चय मोक्षमार्ग होता है वहाँ उसके निमित्तस्वरूप व्यवहार मोक्षमार्ग होता हो है ॥३॥ उक्त सभ्यका पुनः समर्थन उपादान निजगुण जहां तह निमित्त पर होम | भेदज्ञान परमाणविधि विरला बूझे कोय ||४|| जहाँ पर उपादानस्वरूप आत्मगुण होता है वहाँ परपदार्थ निमित्त स्वतः होता है। यह मेदज्ञानरूप प्रमाणकी विधि है। इसे कोई बिरला ( भेदज्ञानी) जीव ही जानता है ||४|| [ निश्चयनय केवल उपादानको स्वीकार करता है और व्यवहारनय बाह्य निमितको स्वीकार करता है । यह मेवविज्ञानको प्रमाण करनेकी
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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