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________________ १० जैनतत्त्वमीमांसा मनोवचन कायव्यापारक्रियारहित निजशुद्धात्मतत्त्वभावनाशून्यः सन्नुपचरितासद्भूतव्यवहारेण ज्ञानावरणादिद्रव्यकर्मणां 'आदि' शब्देनोवारिकवैक्रियिकाहारकशरीरजवाहारादिषट् पर्याप्तियोग्यपुद्गल पिण्डरूपनोकर्मणां तथैवोपचरितासद्भूतव्यवहारेण बहिविषयघट - पटादीनां च कर्ता भवति । 2 मन, वचन और कायके व्यापारसे होनेवाली क्रियासे रहित ऐसा जो निज शुद्धात्मतत्त्व उसकी भावनासे रहित हुआ यह जीव अनुपचरित असद्भूत व्यवहारकी अपेक्षा ज्ञानावरणादि द्रव्यकमका, आदि शब्दसे औदारिक, वैक्रियिक और आहारकरूप तीन शरीर और आहार आदि छह पर्याप्तियोके योग्य पुद्गल पिण्डरूप नोकर्मोंका तथा उपचरित असभूत व्यवहारनयकी अपेक्षा बाह्य विषय घट-पट आदिका कर्ता होता है । उक्त कथनका तात्पर्य है कि परमार्थसे कर्म, नोकर्म और घट-पट आदिका जीव कर्ता हो और वे उसके कर्म हों ऐसा नही है । परन्तु जैसा कि नयचक्र और आलापपद्धतिमें बतलाया है उसके अनुसार एक द्रव्यके गुणधर्मो दूसरे द्रव्यका कहनेवाला जो उपचरित या अनुपचारित असद्भूत व्यवहारनय है उस अपेक्षासे यहाँपर जीवको पुद्गलकर्मों, नोकर्मों और घट-पट आदिका कर्ता कहा गया है तथा पुद्गलकर्म, नोकर्म और घट-पट आदि उसके कर्म कहे गये है । इससे स्पष्ट है कि जहाँ शास्त्रोंमे भिन्न कर्तृ - कर्म आदिरूप व्यवहार किया गया है वहाँ उसे उपचरित अर्थात् प्रयोजन विशेषसे कल्पित ही जानना चाहिए, क्योंकि किसी एक द्रव्यके कर्तृत्व और कर्मत्व आदि छह कारक धर्मोका दूसरे द्रव्यमें अत्यन्त अभाव है और यह ठीक भी है, क्योंकि जब कि एक द्रव्यकी विवक्षित पर्याय अन्य द्रव्यकी विवक्षित पर्यायमें बाह्य निमित्त है' यह कथन ही व्यवहारनयका विषय है' तब भिन्न कर्तृकर्म आदि रूप व्यवहारको वास्तविक कैसे माना जा सकता है ? तात्पर्य यह है कि जहाँ दो द्रव्योंकी विवक्षित पर्यायोंमें कर्ता-कर्म आदिरूप व्यवहार करते हैं वहाँ जिसमें अन्य द्रव्यके कर्तृत्व आदि धर्मो का उपचार किया गया है वह स्वतन्त्र द्रव्य है और जिसमें अन्य द्रव्यके कर्मत्व आदि धर्मोंका उपचार किया गया है वह स्वतन्त्र द्रव्य है, उन दोनों १. व्यवहारनयस्थापितो उदासीनो पञ्चा० गा० ८९ टीका । व्यवहारेण गति - स्थित्यवगाहन रूपेण । पञ्चा० मा० ९६ टीका ।
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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