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________________ अनेकान्त स्याद्वादमीमांसा ३७९ 'अस्तित्व' द्वारा और अविवक्षितका 'नास्तित्व' द्वारा कथना कर अनेकान्तको ही प्रतिष्ठा की गई है। २. अब 'वहारेणवदिस्सह पाणिस्स' इत्यादि गाथाको लें । इसमे सर्वप्रथम उस ज्ञायकस्वभाव आत्मा में पर्यायार्थिकदृष्टिसे ज्ञान, दर्शन, चारित्र और वीर्य मादि विविध धर्मोकी प्रतीति होती है यह दिखलानेके लिए व्यवहारनयसे उनका सद्भाव स्वीकार किया गया है इसमें सन्देह नहीं । किन्तु द्रव्याथिक दृष्टिसे उसी आत्माका अवलोकन करने पर ये भेद उसमें लक्षित न होकर एकमात्र त्रिकाली ज्ञायकस्वभावी आत्मा ही प्रतीति में आता है, इसलिए यहाँपर भी गाथाके उत्तरार्ध में ज्ञायकस्वभाव आत्माकी अस्तित्व धर्म द्वारा प्रतीति कराकर उसमें अनुपचारित सद्भूत, व्यवहारका 'नास्तित्व' दिखलाते हुए अनेकान्तको ही स्थापित किया गया है । ३. जब कि मोक्षमार्ग में तिश्चयके विषय में व्यवहारनयके विषयका असत्त्व ही दिखलाया जाता है तो उसके प्रतिपादनकी आवश्यकता ही क्या है ऐसा प्रश्न होने पर 'जड़ ण वि सक्कमणज्जो' इत्यादि गाथामे दृष्टान्त द्वारा उसके कार्यक्षेत्रकी व्यवस्था की गई है और मौवीं तथा दशवीं गाथामें दृष्टान्तको दाष्टन्तिमें घटित करके बतलाया गया है। इन तीनो गाथाओंका सार यह है कि व्यवहारनय निश्चयनयके विषयका ज्ञान करानेका साधन ( हेतु ) होने से प्रतिपादन करने योग्य तो अवश्य है, परन्तु मोक्षमार्ग में अनुसरण करनेयोग्य नहीं है । "क्यों अनुसरण करने योग्य नहीं है इस बातका समर्थन करनेके लिए ११वीं गाथामें निश्चयनयकी भूतार्थता और व्यवहारनयकी अभूतार्थता स्थापित की गई है । यहाँ पर जब व्यवहारनय है और उसका विषय है तो निश्चयनयके समान यथावसर उसे भी अनुसरण करने योग्य मान लेने में क्या आपत्ति है ऐसा प्रश्न होने पर १२वीं गाथा द्वारा उसका समाधान करते हुए बतलाया गया है कि मोक्षमार्गमें उपादेयरूपसे व्यवहारनय अनुसरण करने योग्य तो कभी भी नहीं है । हाँ गुणस्थान परिपाटीके अनुसार वह जहाँ जिस प्रकारका होता है उतना जाना गया प्रयोजनवान् अवश्य है । इस प्रकार इस वक्तव्य द्वारा भी व्यवहारनय और उसका विषय है यह स्वीकार करके तथा उसका त्रिकाली ध्रुवस्वभावमें असत्त्व दिखलाते हुए अनेकान्तकी ही प्रतिष्ठा की गई है । ४. गाथा १३ में जोवादिक नो प्रदार्थ हैं यह कहकर व्यवहारनयके
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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