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________________ ..." FER MILWAY ७. रूपादिक सन्निवेशविशेषका नाम संस्थान है। उसमें से घरग्रहण होने पर रूपमुखसे घटका महण हुबा इसलिए रूप स्वारमा है और रसादि परात्मा है। वह घट रूपसे अस्तित्वरूप है और रसाविरूपसे नास्तिस्वरूप है। अब चक्षुसे घटको ग्रहण करते हैं तब यदि रसादि भी घट हैं ऐसा ग्रहण हो जाय तो रसादि भी चक्षुग्राह्य होनेसे रूप हो जायेंगे और ऐसी अवस्था में अन्य इन्द्रियोंकी कल्पनाही निरर्थक हो जायगी। अथवा चक्षु इन्द्रियसे रूप भी घट है ऐसा ग्रहण न होवे तो वह चक्षु इन्द्रियका विषय ही न ठहरेगा। ८. शब्दमेदसे अर्थभेद होता है, अतः घट, कूट आदि शब्दोंका अलग अलग अर्थ होगा। जो घटनक्रियासे परिणत होगा वह घट कहलायेगा और जो कुटिलरूप क्रियासे परिणत होगा वह कुट कहलायेगा। ऐसी' अवस्थामें घटन क्रियाका कर्तृभाव स्वात्मा है और अन्य परात्मा । यदि यन्यरूपसे भी घट कहा जाय तो पटादिसे भी घट व्यवहार होना चाहिए और इस तरह सभी पदार्थ एक शब्दके वाच्य हो जायेंगे । अथवा घटन क्रियाको करते समय भी वह अघट होवे तो घट व्यवहारकी निवृत्ति हो जायगी। ९ घट शब्दके प्रयोगके बाद उत्पन्न हुया घटरूप उपयोग स्वात्मा है, क्योंकि वह अन्तरंग है और अहेय है तथा बाह्य घटाकार परात्मा है, क्योंकि उसके अभावमें भी घटव्यवहार देखा जाता है। वह घट उपयोगाकारसे है अन्यरूपसे नहीं। यदि घट उपयोगाकारसे भी न हो तो वक्ता और श्रोताके उपयोगरूप घटाकारका अभाव हो जानेसे उसके आश्रयसे होनेवाला व्यवहार लुप्त हो जायगा। अथवा इतररूपसे भी यदि घट होवे तो पटादिको भी घटत्वका प्रसंग मा जायगा। १०. चैतन्यशक्तिके दो आकार होते हैं-जानाकार और शेयाकार। प्रतिबिम्बसे रहित दर्पणके समान ज्ञानाकार होता है और प्रतिबिम्बयुक दर्पणके समान ओयाकार होता है। उसमें घटरूप शेयाकार स्वात्मा है, क्योंकि इसीके आश्रयसे घट व्यवहार होता है और शानाकार परात्मा है, क्योंकि वह सर्वसाधारण है। यदि ज्ञानाकारसे घट माना जाय तो पटादि शानके काल में भी जानाकारका सविधान होनेसे घटव्यवहार होने लगेगा और यदि घटरूप शेयाकारके काल में घट नास्तित्वरूप माना जाय तो उसके आश्रयसे इतिकर्तव्यताका लोप हो जायगा। यह एक ही पदार्थ में एक कालमें नममेवसे सत्वधर्म और बसस्वधर्म
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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