SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 351
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१८ जैनतत्वमीमांसा पहिचाना नहीं, जिन-आज्ञा मानकर निश्चय-व्यवहाररूप मोक्षमार्ग दो प्रकार मानते है । सो मोक्षमार्ग दो नहीं है, मोक्षमार्गका निरूपण दो प्रकार है । जहाँ सच्चे मोक्षमार्गको मोक्षमार्ग निरूपित किया जाय सो निश्चय मोक्षमार्ग है और जहां मोक्षमार्ग तो है नहीं, परन्तु मोक्ष मार्गका निमित्त है व सहवारी है उसे उपचारसे मोक्षमार्ग कहा जाय मो व्यवहार मोक्षमार्ग है, क्योंकि निश्चय-व्यवहारका सर्वत्र ऐसा ही लक्षण है। सच्चा निरूपण सो निश्चय, उपचार निरूपण सो व्यवहार, इसलिये निरूपण अपेक्षा दो प्रकार मोक्षमार्ग जानना । एक निश्चय मोक्षमार्ग है, एक व्यवहार मोक्ष मार्ग-इस प्रकार दो मोक्षमार्ग मानना मिथ्या है । तथा निश्चय-व्यवहार दोनोको उपादेय मानता है वह भी भ्रम है, क्योंकि निश्चय-व्यवहारका स्वरूप तो परम्पर विरोधसहित है । कारण कि समयसारमें ऐसा कहा है पृ. २४८-२४९ । __ ववहागे भूदात्थो भूदत्थो देसिदो दु सुद्धणओ ।। अर्थ-व्यवहार अभूतार्थ है, सत्य स्वरूपका निम्पण नहीं करता, किसी अपेक्षा उपचारसे अन्यथा निरूपण करता है। तथा शुद्धनय जो निश्चयनय है वह भूतार्थ है, जैसा वस्तुका स्वरूप है वैसा निम्पण करता है। इस प्रकार इन दोनोंका स्वरूप तो विरुद्धता सहित है। इस प्रकार पराश्रित विकल्पका नाम व्यवहार नय है या उपचार नय है यह सिद्ध होनेपर आगे नयचक्र व आलाप-पद्धति आदिमें अनेक प्रकारसे जो नयोकी प्ररूपणा दृष्टिगोचर होती है उसे ध्यानमें रखकर हम देखेंगे कि अध्यात्ममे किस नय पद्धतिसे तत्त्वप्ररूपणा दृष्टिगोचर होती है और चरणानुयोगमें किस नय पद्धतिको अगीकारकर आचारादि की प्ररूपणा की गई है। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि नय निक्षेप और प्रमाणके स्वरूप और उनके भेदोंका कथन द्रव्यानुयोगका विषय है। पर उनमेसे किस नयसे किस अनुयोगमें किस विषयकी प्ररूपणा की गई है यह दिखलानेके लिए उस अनुयोगमें भी उन नयोंका निर्देश किया जाता है यह पद्धति पुरानी हैं। षट्खण्डागम और कषायप्राभूतमें इस पद्धतिके स्थल-स्थल पर दर्शन होते हैं । उसी सरणिका अनुसरणकर अनगारधर्मामृतमे भी उसमे वर्णित विषयको नयपद्धतिसे समझनेके लिये कतिपय नयोंका दिग्दर्शन कराया गया है । तदनुसार वहाँ शुद्ध निश्चय नयके स्वरूपको स्पष्ट करते हुए लिखा है-- मर्वेऽपि शुद्ध-बुद्धकस्वभावाश्चेतना इति सभी जीव शुद्ध, बुद्ध एक स्वभाववाले हैं इस प्रकार निश्चय करना शुद्ध निश्चयनय है।
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy