SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ E २२० २२४ २२६ २३१ २३९ २५५ २६८ २७१-२८८ २७८ २८१ २८५ विषय-सूची २ लौकिक प्रमाणोंका कल्पित उपयोग ३. लोकिक प्रमाणोंसे अपनी कल्पनाकी पुष्टि ४. आगमिक प्रमाणोंका कल्पित उपयोग। ५. यथार्थ तथ्योंपर प्रकाश डालनेका उपक्रम ६. कतिपय शास्त्रीय उदाहरण ७. आ० कुन्दकुन्दके वचनका तात्पर्य ८. शंका-समाधान ९ कतिपय विपरीत मान्यताओंका निरसन १०. बाह्य व्याप्ति और क्रम नियमित पर्याय ११. उपसहार ९. मम्यक् नियति स्वरूप मीमांसा १ उपोद्धात २ शंका-समाधान ३. आगमके प्रकाशमें सम्यक् नियतिका समर्थन ४. उपसहार १० निश्चय-व्यवहार मीमांसा १. द्रव्य-गुण-पर्याय निर्देश २. लक्षणको दृष्टिसे द्रव्य विचार और उनके भेद ३. गुणका स्वरूप ४. पर्यायका स्वरूप ५ प्रमाण-नयस्वरूप निर्देश ६ नयोंके भेद ७ अध्यात्मनय ८. निश्चयनयका स्वरूपनिरूपण ९. निश्चयनयके दो भेद और उनके कार्य १०. भूतार्थ और अभूतार्थ पदोंका अर्थ ११. निश्चयनयका विषय १२. उपचार पदका अर्थ १३ व्यवहारनयका विवेचन १४. व्यवहारनय १५. अध्यात्मवृत होनेका उपाय १६. निश्चयनय एक है १७. व्यवहारनय २८९-३४८ २८९ २८९ २९० २९० २९५ २९६ २९८ २९९ ३०२ ३१० ३१३ ३१५ ३२० ३२१ ३२३ ३२५
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy