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________________ निश्चयउपावान-मीमांसा ७७ यह निमित्त नैमित्तिकव्यवहारकी व्यवस्था है। इसके रहते हुए भी कितने ही व्यवहाराभासी व्यवहार हेतुके अनुसार कार्यकी उत्पत्ति मानने वाले महानुभाव निश्चय उपादान कारणके वास्तविक रहस्यकोनस्वीकार कर ऐसी शंका करते है कि खानसे लाई गई मिट्टीसे यदि घटकी उत्पत्ति होगी तो उसमें क्रमसे ही होगी इसमें सन्देह नहीं। परन्तु खानसे लाई गई अमुक मिट्टी घटका निश्चय उपादान होगा और अमुक मिट्टी सकोराका निश्चय उपादान होगा यह मिट्टी पर निर्भर न होकर कुम्हार पर निर्भर है। कुम्हार जिस मिट्टीसे घट बनाना चाहता है उससे घट बनता है और जिससे सकोरा बनाना चाहता है उससे सकोरा बनता है, इसलिए यह मानना पड़ता है कि कार्यकी उत्पत्ति अपने निश्चय उपादानसे होकर भी वह बाह्य निमित्तके अनुसार ही होती है। इतना ही नहीं यदि कोई विशिष्ट धट बनवाना होता है तो उसके लिए विशिष्ट कुम्हारकी शरण लेनी पड़ती है। यदि ऐसा हो कि केवल अमुक प्रकारकी मिट्टीसे ही विशिष्ट घट बन जाय, उसमें कुम्हारकी विशेषताको ध्यानमे रखनेकी आवश्यकता न पड़े तो फिर मात्र योग्य मिट्टोका ही संग्रह किया जाना चाहिए, विशिष्ट कारीगिरकी ओर ध्यान देनेकी क्या आवश्यकता ? यतः लोकमें योग्य उपादान सामग्रीके समान योग्य कारीगिरका भी विचार किया जाता है और ऐसा योग मिल जाने पर कार्य भी विशिष्ट होता है। इससे मालम पड़ता है कि कार्यकी उत्पत्ति अपने निश्चय उपादानसे होकर भी वह बाह्य निमित्तके अनुसार ही होती है। तात्पर्य यह है कि किस समय किस द्रव्यको क्या पर्याय हो यह निश्चय उपादान पर निर्भर न होकर बाह्य निमित्तके आधीन है। वास्तवमें व्यवहार हेतुकी सार्थकता इसीमें है, अन्यथा कार्यमात्रमें व्यवहार हेतुको स्वीकार करना कोई मायने नहीं रखता। यह एक प्रश्न है जो दो द्रव्योंके निमित्त-नैमित्तिकसम्बन्ध और एक द्रव्याश्रित उपादान-उपादेयसम्बन्धके वास्तविक रहस्यको न स्वीकार कर व्यवहाराभासी महाशय उपस्थित किया करते हैं । यद्यपि इस प्रश्नका समाधान पहिले हम जो निश्चय उपादान कारणका स्वरूप दे आये हैं उससे ही हो जाता है, क्योंकि उससे यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि कार्यसे अनन्तर पूर्व समय में जैसा उपादान होगा, अनन्तर उत्तर क्षणमें उसी प्रकारका कार्य होगा। व्यवहार हेतु उसे अन्यथा नहीं परिणमा सकता।
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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