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________________ ८२ : जैन तर्कशास्त्र में अनुमान-विचार (५) षट्खण्डागममें श्रुतज्ञानके इकतालीस' पर्यायशब्द दिये गये हैं। उनमें एक ‘हेतुवाद' है। इस हेतुवाद' का व्याख्यान वीरसेनने निम्न प्रकार किया है___ हेतुः साध्याविनाभावि लिंग अन्यथानुपपत्त्येकलक्षणोपलक्षितः । स हेतुढिविधः साधनदूषणभेदेन । तत्र स्वपक्षसिद्धय प्रयुक्तः साधनहेतुः । प्रतिपक्षनिर्लोट्टनाय प्रयुक्तो दूषणहेतुः । हिनाति गमयसि परिच्छिनत्यर्थमात्मानं चेति प्रमाणपंचकं वा हेतुः । स उच्यते कथ्यते अनेनेति हेतुवादः श्रुतज्ञानम् । साध्यके अभावमें न होने वाले लिंगको हेतु कहते हैं। और वह अन्यथानपपत्तिरूप एक लक्षणसे युक्त होता है। वह दो प्रकारका है--१. साधनहेतु और २. दूषण हेतु। इनमें स्वपक्षको सिद्धिके लिए प्रयुक्त हेतुको साधन हेतु और प्रतिपक्षका खण्डन करने के लिए प्रयुक्त हेतुको दूषणहेतु कहते हैं । अथवा हेतुशब्दको व्युत्पत्तिके अनुसार जो अर्थ (वस्तु)का और अपना ज्ञान कराता है उस प्रमाणपंचकको हेतु कहा जाता है। यहाँ प्रमाणपंचकसे वीरसेनको मति, श्रुत आदि पांच ज्ञान अभिप्रेत प्रतीत होते हैं । उक्त प्रमाणपंचकरूप हेतु जिसके द्वारा अभिहित हो वह हेतुवादरूप श्रुतज्ञान है । वीरसेनके इस हेतुवाद-व्याख्यानसे असन्दिग्ध है कि यहाँ हेतुवादके अन्तर्गत वह हेतु विवक्षित है जो साध्याविनाभावि लिंगसे होने वाले साध्यज्ञान (अनुमान)में प्रयुक्त होता है और जिसके बलपर अनुमानको लिंगज या लैंगिक कहा जाता है। हेतुवादशब्दका प्रयोग अनुमानके अर्थ में हमें अन्य दर्शनोंमें भी मिलता है । निष्कर्ष यह कि वीरसेन अनुमानको श्रुतज्ञान मानते हैं, उसे मतिज्ञान माननेकी ओर उनका इङ्गित प्रतीत नहीं होता। यहाँ हम उनका एक महत्त्वपूर्ण उद्धरण और दे देना आवश्यक समझते हैं । इस उद्धरणसे स्पष्ट हो जाएगा कि वोरसेन अनुमानको श्रुतज्ञानके अन्तर्गत स्वीकार करते हैं । यथा-- "सुदणाणं दुविहं-सहलिगजं असलिंगजं चेदि । धमलिंगादो जलणावगमो असदलिंगजो । भवरो सदलिंगजो। किंलक्खणं लिंग ? अण्णहाणुववत्तिलक्खण । पक्षधर्मत्वं लपक्षे सत्वं विपक्षे चासत्त्वमित्येतैस्त्रिभिलक्षणैरुपलक्षित वस्तु किं न लिंगमिति चेत्, न, व्यभिचारात् । तद्यथा--पक्वान्याम्रफलान्ये१. पावयणं पवयणीयं पवयणट्ठो... हेदुवादो णयवादो पवरवारो मग्गवादो सुदवादो पर वादो लोइयवादो लागुत्तरीय वादो...चेदि । -भूतवली-पुष्पदन्त, षट्ख०, ५।५।५०, पृ० २८० । २. घवला ५५.५०, पृ० २८० ।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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