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________________ (३३२) जैन सुबोध गुटका। हो, अविद्याको दूर हटा तो,सही ॥ १ ॥ समकिता में अके बनो, सैनिक राजा के तरह, मत, साज बंछो देवकी कुजापि भी मत ना करो। रूपातित से लोह लगा तो सही ॥ २॥ पाप के बचने के खातिर, त्याग सेवन कीजिये । ऐसी अमोलख वक्त को नहीं भ्रल जाने दीजिये । मनुज जन्म का कर्तव्य बजा तो सही ॥३॥ कर तपस्याः भाव से इसी नफ़्स को तूं मार ल । कह चौथमल मौका मिला अब आत्मा को तार ले । पूना शहर में धर्म कमातो सही ॥४॥ ,, नंबा ४५० . (तर्ज पूर्ववत् ) . . कभी भूल किसी को सतावो मती, अपने दिल को तो सहन बनावो मती ।। टर ।। मत सतावो तुम किसी को, मान लो तुम मानलो । वरना दोजख, में गिरोगे,, बात सची जानलो । जुल्म करने में कदम बढ़ावो मती ॥ १॥ कर्ता तक था जिस्म का, पर यह सदा न रहायगा । जो खाक का पुतला बना, वह खाक में मिल जायगा । खुब सूरत देखने लुभाओ मती ॥२॥ धनके लालच बीच श्रा, मत जिंदगी बरबाद कर । किस लिये पैदा हुवा इस बात को तूं यादकर, बुरे कामों में पैसा लगाओ. मती. ॥३॥ अय युवानों इस युवानी, का गरम बाज़ार है । है
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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