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________________ जिन सुबोध गुटका ( ३३३ ) नेकी बदी का सोदा इस में, घिकरहा दर वार है । यहां से बंदी खरीद ले जावो मंती ॥ ४ ॥ तन से तुम तपस्या करो, सुखावत, करो धन धान से । साल सत्यासी वाघली में चौथमल कहे आन के 1. कभी भांग का रगड़ा लगावो मती ॥ ५ ॥ नम्बर ४५१ ( रार्ज - पूर्ववत् ) " है कौन यह ज्ञान लगा तो सही, अज्ञान का परदा हटाती सही || टेर || क्या तफावत सोचलो, इनसान और हैवान में । हेवान से विचार शक्ति अधिक है इनसान में । जरा सोच के दिल में जमा तो सहीं ॥ १ ॥ श्रार्यः मनुष्य क्षत्री नृपत अपने तांई मानता । संयोग के लक्षणः को असली समझना अज्ञानता । सच्ची बातें ये दिल में बिठा तो सही ॥ २ ॥ जिसम भी तेरा नहीं मानिंद है एह सदन : के । भ्यान से तलवार जैसे तूं जुदा है बदन से प्यारे देह का मान मिटाती सही ॥ ३ ॥ गरुर गुस्सा दगा लालच इसको भी वह मत जानियो । अच्छे बुरे निमित्त के फल्द इसे पहचानियो । असली बातों को दिल में बिठा तो सही ।। ४ ।। निज २ विषय को जाने इंद्रिय नहीं, दिगर का भान है । प्रत्येक इंद्रिय का विषय का सब उसीको ज्ञान है । वह कौन है हमको बता तो सही ॥५॥ 1 . ' : 1 · : 1.
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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