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________________ जैन सुबोध गुटका । ( ३३१ ) रखो, जो चाहते हो मुक्ति को वास २ ॥ ४ ॥ साल सित्यासी शहर नगर में, कियो चौथमल चौमास २ ॥ ५ ॥ ༡ ༤-, S नंबर ४४८ [ तर्ज मेरे स्वामी मुगत में बुलालो मुझे ] मिली कसी अमोल ये काया तुझे, कृपा कर के गुरुजी तावे तुझे || टेर || तीर्थकर नर काया से, लेते हैं जो अवतारजी, कर के करणी देही से, होते हैं भव दधि पारजी, मैं तो सची सची ये जीतावुं तुझे ॥ १ ॥ महावीर ने नर देही से, उपकार भारत में किया, राम ने श्रवतार जग में, इसी काया से लिया, परहित कर लो ये ही समझा तुझे ॥ २ ॥ कंचन से महंगी काया है, यह निती का ठहराव है, कहे चौथमल वरना यह काया, मिट्टी से खराब है, करले काया से तपस्या जितावुं तुझे ॥ ३ ॥ नंबर ४४६ : [ तर्ज- महावीर से ध्यान लगाया करो ] तेरे दिलका तूं भ्रम मिटा तो सही, जरा राह निजात की पात सही || ढेर || महावीर का फर्मान है अव्वल तो सम्यक ज्ञान हो, नो पदार्थ पर द्रव्यका यथार्थ फिर भान
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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