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________________ २-अप गुण पर्याय ७४ २-व्याधिकार १४६. आकाश द्रव्य किस किस रूप में सहाई है ? द्रव्यों को परस्पर मिलकर अर्थात एक दूसरे समाकर रहने में तथा जीव पुद्गल द्रव्यों के प्रदेशों को सुकड़कर एक दूसरे में समाने में सहाई होता है। १५०. द्रव्य के आकार निर्माण में आकाश द्रव्य का क्या स्थान है ? प्रदेशों का सिकुड़ना आकाश द्रव्य के निमित्त से होता है, क्योंकि एक दूसरे में अवकाश पाये बिना वह सम्भव नहीं । १५१. आकाश का रंग कैसा है ? अमूर्तीक होने के कारण इसका कोई रंग नहीं । १५२. यह नीला नीला क्या दीखता है ? यह आकाश नहीं है, बल्कि उसमें स्थित पुद्गल कणों पर पड़े हुए सूर्य प्रकाश का प्रतिबिम्ब है। १५३. आकाश ऊपर और पृथिवी नीचे क्या यह ठीक है ? नहीं, आकाश में ऊपर नीचे की कल्पना सम्भव नहीं, क्योंकि वह सर्वव्यापक है। १५४. यह पृथिवी किस चीज पर टिकी हुई है, क्या किसी स्तम्भ पर या शेष नाग के सर पर? आकाश में टिकी है । स्तम्भ या शेषनाग के सहारे की आवश्य कता नहीं, क्योंकि आकाश में स्वयं अवकाशदान शक्ति है । १५५. सूर्य चन्द्र आदि अधर में कैसे लटक रहे हैं ? सूर्य चन्द्र ही नहीं पृथिवी भी इसी प्रकार अधर में लटक रही है। चन्द्र में बैठकर देखें तो ऐसी ही दिखाई दे। यह सब आकाश की अवकाशदान शक्ति का माहात्म्य है। (१५६) आकाश कहां पर है ? आकाश सर्वव्यापी है। १५७. पृथिवी के चारों ओर आकाश है पर उसके भीतर नहीं ? नहीं पृथिवी के भीतर भी आकाश है, क्योंकि वह अमूर्तीक व सूक्ष्म है।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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