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________________ २-द्रव्य गुण पर्याय ७५ २-द्रव्याधिकार १५८. क्या हमारे शरीर में भी आकाश है ? हां, इसमें जो पोलाहट है अथवा रोम कूप हैं, वह सब आकाश है, तथा मांस पेशियों व हड्डियों में भी वह अवश्य स्थित है। (१५६) आकाश के कितने भेद हैं ? निश्चय से आकाश एक ही अखण्ड द्रव्य है । व्यवहार से इसके दो भेद हैं--लोकाकाश व अलोकाकाश । (१६०) लोकाकाश किसे कहते हैं ? जहां तक जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म व काल ये पाँचों द्रव्य हैं (दिखाई दें) उसको लोकाकाश कहते हैं। (१६१) अलोकाकाश किसे कहते हैं ? लोक से बाहर के सर्व अवशेष आकाश को अलोकाकाश कहते हैं। १६२. लोकाकाश का आकार कसा ? पुरुषाकार है, अर्थात यदि पुरुष अपने दोनों हाथों को अपने दोनों कुल्हों पर रखकर पांव फैलाकर खड़ा हो जाये तो वैसा ही लोक का आकार है। (१६३) लोक की मोटाई, लम्बाई, चौड़ाई और ऊंचाई कितनी है ? लोक की मोटाई उत्तर दक्षिण दिशा में सब जगह सात राजू है। चौड़ाई पूर्व व पश्चिम दिशा में मूल में (नीचे जड़ में पांव के स्थान पर) सात राजू है। ऊपर क्रम से घटकर सात राजू की ऊंचाई पर (कुल्हों के स्थान पर मध्य में) एक राजू है । फिर क्रम से बढ़कर १०॥ राजू की ऊंचाई पर (कुहनियों के स्थान पर) पांच राजू है। फिर क्रम से घट कर चौदह राजू की ऊंचाई पर (सर के स्थान पर) एक राजू चौड़ाई है। ऊर्ध्व व अधो दिशा में (सर से पांव तक) ऊंचाई चौदह राजू है।। (१६४) धर्म तथा अधर्म द्रव्य खण्ड रूप है किंवा अखण्ड रूप, और इनकी स्थिति कहां है ? धर्म व अधर्म द्रव्य दोनों एक एक अखण्ड द्रव्य हैं और दोनों
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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