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________________ २-द्रव्य गुण पर्याय ७३ २-द्रव्याधिकार यदि यह न होता तो गतिमान जीव व पुद्गल सदा सीधे गमन ही किया करते, कभी न ठहर पाते और न मुड़ सकते। १४३. धर्म द्रव्य जीव पुद्गल को चलाता है और अधर्म ठहराता है। यदि दोनों में झगड़ा हो जाये तो क्या जीव बीच में ही पिस जायेगा? नहीं, क्योंकि ये दोनों बल पूर्वक जीव पुद्गल को चलाते या ठहराते नहीं हैं। वह स्वयं चलें या ठहरें वे तो सहाई मात्र होते हैं। १४४. अधर्म द्रव्य के उदासीन सहकारीपने को उदाहरण से समझाओ। जैसे वृक्ष की छाया पथिक को बल पूर्वक नहीं रोकती, बल्कि पथिक उसे देखकर स्वयं ही यदि चाहे तो रुक जाता है, उसी प्रकार अधर्म द्रव्य जीव पुद्गल को बलपूर्वक नहीं रोकता, बल्कि उसके निमित्त से स्वयं चाहें तो रुक जाते हैं। यदि छाया न हो तो इच्छा होने पर भी पथिक न रुके, इसी प्रकार यदि अधर्म द्रव्य न हो तो जीव पुद्गल कभी भी रुक न सके। १४५. क्या सिद्ध भगवान को भी अधर्म द्रव्य सहकारी हैं ? केवल उस समय सहकारी हुआ था जब कि वे ऊर्ध्व लोक में जा कर पहिले पहल ठहरे थे। उसके पीछे न वे कभी चलते हैं और न चलते चलते ठहरते हैं । अतः अन्य चार द्रव्यों वत् अब उन को भी अधर्म निमित्त नहीं है । १४६. अधर्म द्रव्य स्वयं ठहरा हुआ है, क्या वह स्वयं को भी निमित्त नहीं, क्योंकि वह गतिपूर्वक स्थित नहीं है। (५. आकाश द्रव्य) (१४७) आकाश द्रव्य किसे कहते हैं ? जो जीवादि पांच द्रव्यों को रहने के लिए जगह दे। .. १४८. अवकाश या जगह देने से क्या समझे? कोई भी द्रव्य इस महान आकाश (space) में जहां व जिस प्रकार से चाहें रह सकते हैं, यही अवकाश या जगह देना है।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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