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________________ १ - न्याय २६ (७) द्रव्याथिक नय किसको कहते हैं ? द्रव्य अर्थात जो सामान्य को ग्रहण करे । (८) पर्यायार्थिक नय किसे कहते हैं ? जो विशेष को अर्थात गुण व पर्याय को विषय करे । (M) द्रव्याथिक नय के कितने भेद हैं ? तीन हैं- नैगम, संग्रह, व्यवहार । (१०) नैगम नय किसको कहते हैं ? दो पदार्थों में से एक को गौण व दूसरे को प्रधान करके भेद अथवा अभेद को विषय करने वाला तथा पदार्थ के संकल्प को ग्रहण करने वाला ज्ञान नैगम नय है, जैसे - कोई आदमी रसोई में चावल चुन रहा था । उस से पूछा कि तुम क्या कर रहे हो । तब उसने कहा कि भात बना रहा हूँ । यहाँ चावल और भात में अभेद विवक्षा है । अथवा चावलों में भात का संकल्प है । ( ११ ) संग्रह नय किसे कहते हैं ? ४- नय अधिकार अपनी जाति का विरोध नहीं करके अनेक विषयों को एकपने 'ग्रहण करे उसे संग्रह नय कहते हैं, जैसे जीव कहने से चारों गति के जीवों का ग्रहण हो जाता है । (१२) व्यवहार नय किसे कहते हैं ? जो संग्रह नय से ग्रहण किये हुए पदार्थों को विधिपूर्वक भेद करे सो व्यवहार नय है; जैसे जीव का भेद तस स्थावर आदि करना । (१३) पर्यायार्थिक नय के कितने भेद हैं ? चार हैं - ऋजुसूत्र नय, शब्द नय, समभिरूढ नय व एवंभूत नय (१४) ऋजुसून नय किसे कहते हैं ? भूत भविष्यत की अपेक्षा न करके वर्तमान पर्याय मात्र को (पूर्ण सत् के रूप में ) ग्रहण करे सो ऋजुसूत्र नय है । (१५) शब्द नय किसे कहते हैं लिंग, कारक, वचन, काल, उपसर्गादिक के भेद से जो पदार्थ को भेद रूप ग्रहण करे सो शब्द नय है, जैसे-दार भार्या कलब
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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