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________________ १/४ नय-अधिकार (१) नय किसे कहते हैं ? वस्तु के एक देश जानने वाले ज्ञान को नय कहते हैं । (२) नय के कितने भेद हैं ? दो हैं-एक निश्चय दूसरा व्यवहार अथवा उपनय । (३) निश्चय नय किसे कहते हैं ? वस्तु के किसी एक असली अंश को ग्रहण करने वाले ज्ञान को निश्चय नय कहते हैं, जैसे मिट्टी के घड़े को मिट्टी का घड़ा कहना। (४) व्यवहार नय किसको कहते हैं ? किसी निमित्त के वश से एक पदार्थ को दूसरे पदार्थ रूप जानने वाले ज्ञान को व्यवहार नय कहते हैं, जैसे मिट्टी के घड़े को घी के रहने से घी का घड़ा कहना। (५) निश्चय नय के कितने भेद हैं ? दो हैं - एक द्रव्याथिक नय दूसरा पर्यायाथिक नय । ६. द्रव्याथिक व पर्यायाथिक की भांति तीसरा गुणाथिक नय क्यों नहीं कहा? नहीं। क्योंकि गुण स्वयं सहभावी पर्याय होने के कारण, उसका अन्तर्भाव पर्यायाथिक नय में हो जाता है । पर्याय शब्द यहाँ 'विशेष' का वाचक है। (विशेष देखिये वि० . . . अध्याय २/१ सामान्य अधिकार, ४ पर्याय का प्रश्न नं० १०)
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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