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________________ १-न्याय ४-नय अधिकार ये तीनों भिन्न-भिन्न लिंग के शब्द एक ही स्त्री पदार्थ के वाचक हैं, सो यह नय स्त्री पदार्थ को (शब्द भेद से) तीन भेद रूप ग्रहण करता है । इसी प्रकार कारकादि के भी दृष्टान्त जानना । (नोट:-शब्दादि चार नयों का व्यापार पदार्थ के वाचक शब्द में होता है, पदार्थ में नहीं, इसी लिये ये चारों शब्द या व्यंजन नए कहलाते हैं और पदार्थ ग्राहक होने से नैगमादि तीन अर्थ नय है।) (१६) समभिरूढ़ नय किसे कहते हैं ? लिंगादि का भेद न होने पर भी पर्यायवाची)शब्द के भेद से जो पदार्थ को भेद रूप ग्रहण करे, जैसे- इन्द्र शक पुरन्दर ये तीनों एक ही लिंग के पर्याय (वाची) शब्द हैं । देवराज के वाचक हैं। सो यह नय देवराज को तीन भेद रूप ग्रहण करता है। (१७) एवंभूत नय किसे कहते हैं ? जिस शब्द का जिस क्रिया रूप अर्थ है, उस क्रिया रूप परिणमे पदार्थ को ग्रहण करे, सो एवंभूत नय है, जैसे पुजारी को पूजा करते समय ही पुजारी कहना। १८. इन सातों नयों के अन्य प्रकार विभाग करो। दो विभाग हैं-अर्थ नय और दूसरा शब्द या व्यञ्जन नय । १६. अर्थ नय किसे कहते हैं ? जो पदार्थ के सामान्य व विशेष अंशों को ग्रहण करे सो अर्थ नय है। २०. शब्द या व्यञ्जन नय किसे कहते हैं ? जो पदार्थ के वाचक शब्द में व्यापार करे सो व्यञ्जन नय है। २१. सातों में अर्थ नय कौन है ? । नैगम, संग्रह, व्यवहार व ऋजु सूत्र ये चारों पदार्थ के स्वरूप को ग्रहण करने के कारण अर्थ नय हैं । २२. सातों में व्यञ्जन नय कौन है ? तोन शब्द, समभिरूढ व एवंभूत इन तीन नयों का व्यापार
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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