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________________ १-न्याय ३-परोक्ष प्रमाणाधिकार (५२) व्यतिरेकी दृष्टान्त किसको कहते हैं ? जहाँ साध्य की अनुपस्थिति में साधन की अनुपस्थिति दिखाई जाये, जैसे (अग्नि के अभाव की सिद्धि में) तालाब । (५३) उपनय किसको कहते हैं ? पक्ष और साधन में दृष्टान्त की सदृश्यता दिखाने को उपनय कहते हैं, जैसे—यह पर्वत भी वैसा ही धूमवान है (जैसी रसोई)। (५४) निगमन किसको कहते हैं ? नतोजा निकालकर प्रतिज्ञा के दोहराने को निगमन कहते हैं जैसे 'इसलिये यह पर्वत भी अग्नि वाला है'। (नोट: अभ्यास के लिये देखो आगे प्रश्नावली में नं० ११) (५५) हेतु के कितने भेद हैं ? तीन हैं-केवलान्वयी, केवल व्यतिरेकी और अन्वय व्यतिरेकी। (५६) केवलान्वयी हेतु किसे कहते हैं ? जिस हेतु में सिर्फ अन्वय दृष्टान्त हों, जैसे—जीव अनेकान्त स्वरूप है, क्योंकि सत्स्वरूप है। जो-जो सत्स्वरूप होता है वह-वह अनेकान्त स्वरूप होता है, जैसे पुद्गलादिक) (५७) केवल व्यतिरेकी हेत किसको कहते हैं ? जिसमें सिर्फ व्यतिरेकी दृष्टान्त पाया जावे, जैसे-जीवित शरीर में आत्मा है, क्योंकि इसमें श्वासोच्छ्वास है । जहाँजहाँ आत्मा नहीं होता वहाँ-वहाँ श्वासोच्छ्वास भी नहीं होता, जैसे चौकी वगैरह। (५८) अन्वय व्यतिरेकी हेतु किसको कहते हैं ? जिसमें अन्वय दृष्टान्त और व्यतिरेकी दृष्टान्त दोनों हों। जैसे पर्वत में अग्नि है, क्योंकि इसमें धूम है । जहाँ-जहाँ धूम है वहाँ-वहाँ अग्नि होती है, जैसे रसोईघर । जहाँ-जहाँ अग्नि नहीं होती वहाँ-वहाँ धूम भी नहीं होता, जैसे तालाब । (नोट: अभ्यास के लिये देखो आगे प्रश्नावली में नं० ११)
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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