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________________ ७-स्याद्वाद ३-स्यावादाधिकार ३०. 'भी' से अनेकान्त और ही से एकान्त कैसा हो जाता है ? 'भी' पद अपनी शक्ति से स्वयं अन्य धर्मों का संग्रह कर लेने से अनेकान्त या अनेक धर्म सूचक है; तथा 'ही' पद अपनी शक्ति से स्वयं अन्य धर्मों का व्यवच्छेद कर देने से एकान्त या एक धर्म का सूचक है। ३१. स्याद्वाद रूप कथन पद्धति की महत्ता किस बात में है ? पदार्थ युगपत अनेक धर्मों का एक रसात्मक पिण्ड है, परन्तु कथनक्रम में वे सब के सब धर्म युगपत एक रस रूप में जैसे हैं वैसे कहे नहीं जा सकते। उन्हें पृथक-पृथक एक-एक करके आगे पीछे कहने के अतिरिक्त अन्य उपाय नहीं। बिल्कुल मौन रहने से भी तीथं प्रकृति व सकल व्यवहार के लोप का प्रसंग आता है । इसलिये स्याद्वाद पद्धति द्वारा कहने का आविष्कार गुरुओं ने किया है। इस पद्धति द्वारा पृथक पथक भी कहे गए सर्व धर्म अपने एकरसात्म गठन को छोड़ते हुए प्रतीत नहीं होते। ३२. स्याद्वाद को कुछ लोग संशयवाद बताते हैं ? यह उन लोगों का भ्रम है, वास्तव में स्याद्वाद सिद्धान्त बहुत गहन व गम्भीर है। ठीक-ठीक विवेक हुए बिना इसका ठीक ठीक प्रयोग किया जाना असंभव है। तब अपने अज्ञान के कारण ही अथवा किसी साम्प्रदायिक पक्षपात के कारण ही यह सिद्धान्त संशयवादवत प्रतीत होता है। वास्तव में यह संशयवाद नहीं बल्कि वस्तु का ठीक-ठीक निर्णय कराने वाला है, तथा एकान्त व दृढ़ या पक्षपात का निराकरण करके व्यापक दृष्टि प्रदान करने वाला है। ३३. स्यावाद सिद्धान्त एकान्त का निराकरण कैसे करता है ? सप्तभंगी सिद्धान्त द्वारा।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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