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________________ ३-स्यावावाधिकार का उदाहरण है। परन्तु 'देवदत्त स्यात् अर्थात अपने पुत्र की अपेक्षा तो पिता ही है' ऐसा कहने से घोषित होता है कि वक्ता उसे केवल उसके अपने पुत्र का ही पिता मानता है, अन्य व्यक्तियों का नहीं। इससे स्वतः यह अर्थ प्राप्त हो जाता है कि अन्य व्यक्तियों का वह पुत्र आदि भी हो सकता है। यह गौणता का उदाहरण है। २८. सुना जाता है कि 'भी' के प्रयोग से अनेकान्त व 'हो' के प्रयोग से एकान्त हो जाता है ? ठीक है, परन्तु एकान्त व अनेकान्त दोनों ही सम्यक् व मिथ्या ऐसे दो-दो प्रकार के होते हैं। तहां स्यात् पद सहित किया गया 'भी' का प्रयोग सम्यगनेकान्त है, और 'स्यात्' रहित किया गया उसी का प्रयोग मिथ्या एकान्त है। इसी प्रकार 'स्यात' सहित किया गया 'ही' का प्रयोग सम्यगेकान्त है और 'स्यात' रहित किया गया उसी का प्रयोग मिथ्या एकान्त है। २६. सम्यक व मिथ्या अनेकान्त व एकान्त को दृष्टान्त से समझाओ। जैसे- 'देवदत्त पिता भी है, पुत्र भी है, मामा भी है' ऐसा कहने से यह भ्रम होता है कि अवश्य ही ये तोन देवदत्त नामक पृथक पृथक व्यक्ति हैं। क्योंकि एक ही व्यक्ति पिता पुत्र मामा आदि सब कुछ कैसे हो सकता है । अथवा यह भ्रम होता है कि जिस किसी का भी पिता है तथा जिस किसी का भी पुत्र व मामा। दूसरी ओर 'देवदत्त स्यात या किसी की अपेक्षा पिता भी है और किसी की अपेक्षा पुत्र मामा आदि भी' ऐसा कहने से उपरोक्त भ्रम नहीं होता। इसलिये पहिला मिथ्या अनेकान्त है और दूसरा सम्यक। इसी प्रकार 'देवदत्त पिता ही है' ऐसा कहने से पुत्र मामा आदि किसी का भी नहीं है ऐसा भ्रम होता है और 'स्यात पिता ही है' ऐसा कहने से किसी व्यक्ति विशेष का पिता ही है और अन्य किन्हीं का पुत्र आदि भी अवश्य होगा, ऐसा समझ में आता है। इसलिये पहिला मिथ्या एकान्त है और दूसरा सम्यगेकान्त ।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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