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________________ -स्याद्वाद ३०५ २-अनेकान्ताधिकार ६. अतत् किसको कहते हैं ? द्रव्य का स्वरूप गुण पर्याय रूप बिल्कुल नहीं है और गुण पर्याय का स्वरूप द्रव्य रूप बिल्कुल नहीं है । इसी प्रकार एक गुण का स्वरूप अन्य गुण रूप बिल्कुल नहीं है। इसे ही पहले तद्भाव कहा गया है। ७. एक किसको कहते हैं ? द्रव्य अपने गुण पर्यायों के साथ तन्मय रहने के कारण एक है। अथवा अनेक पर्यायों में अनुस्यूत वह एक है । ८. अनेक किसको कहते हैं ? ‘पदार्थ द्रव्य गुण व पर्याय का भेद करने पर अनेक रूप दीखता है । अथवा द्रव्य की व्यञ्जन पर्यायों की ओर लक्ष्य करने से वह अनेक रूप है। ९. नित्य किसको कहते हैं ? अनेक पर्यायों में अनुगत ऊर्वता सामान्य रूप द्रव्य नित्य है। १०. अनित्य किसको कहते हैं ? पदार्थ में सब तन्मय होने से, पर्याय के उत्पन्न व नष्ट होने पर द्रव्य ही उत्पन्नध्वंसी दीखता है। ११. पदार्थ में ये धर्म किस प्रकार रहते हैं ? परस्पर में एकमेक होकर रहते हैं; अथवा इनको आदि लेकर पदार्थ अनन्त धर्मों का एक रसात्मक पिंड है।। १२. परस्पर विरोधी होते हुए भी ये धर्म पदार्य में मंत्री भाव से कैसे रहते हैं ? क्योंकि सामान्य विशेषात्मक ही पदार्थ का स्वरूप है, अकेले सामान्य या अकेले विशेष रूप नहीं । सामान्य का विशेष के साथ कोई विरोध नहीं। १३. युग्म चतुष्टय में सामान्य व विशेषपना क्या है ? (क) 'सत्-असत' धर्म-युगल तिर्यक सामान्य में व्यतिरेकी विशेष को उत्पन्न करता है।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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