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________________ ७-स्पाद्वाद ३०६ २-अनेकान्ताधिकार (ख) 'तत्-अतत्' धर्म-युगल भी तिर्यक सामान्य रूप एक द्रव्य में गुण पर्याय रूप सहभावी विशेष उत्पन्न करता है। (ग) 'एक-अनेक' धर्म-युगल ऊर्ध्वता सामान्य में क्रमभावी विशेष उत्पन्न करता है। (घ) 'नित्य-अनित्य' धर्म-युगल ऊर्ध्वता सामान्य रूप ध्रुवत्व में उत्पाद व्यय रूप विशेष उत्पन्न करता है। १४. युग्म चतुष्टय में पांचों भाव कैसे घटित होते हैं ? अत्यन्ताभाव व अन्योन्याभाव के द्वारा सत्-असत् धर्म उत्पन्न होते हैं । तद्भाव के द्वारा तत्-अतत् व एक अनेक धर्म उत्पन्न होते हैं। प्रागभाव व प्रध्वंसाभाव के द्वारा एक अनेक तथा नित्य-अनित्य धर्म उत्पन्न होते हैं। १५. पदार्थ के स्वरूप में विरोध भले न हो पर सुनने में तो लगता साधारण रूप से कहने सुनने में अवश्य विरोध लगता है, परन्तु स्याद्वाद पद्धति से कहने पर विरोध नहीं लगता। १६. अनेकान्त कितने प्रकार का होता है ? दो प्रकार का-सम्यक व मिथ्या। १७. सम्यक् अनेकान्त किसको कहते हैं ? पदार्थ में समस्त धर्मों को एक रूप से अखण्ड देखना सम्यक् अनेकान्त है अथवा एक ही पदार्थ में अपेक्षावश विरोधी शक्तियों को देखना अनेकान्त है; जैसे जो घट 'सत्' धर्म युक्त है वही किसी अन्य अपेक्षा में 'असत्' धर्म युक्त है। १८. मिथ्या अनेकान्त किसको कहते हैं ? पदार्थ के समस्त धर्मों को इस प्रकार देखना, मानो वे कोई पृथक पृथक स्वतन्त्र पदार्थ हों, जिनका परस्पर में एक दूसरे से कोई सम्बन्ध नहीं । जैसे—सत् धर्मयुक्त घट तो कोई और है और असत् धर्म युक्त कोई और ।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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