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________________ ६-तत्वार्थ २-रत्नत्रयाधिकार ६२. सम्यग्ज्ञान के आठ अंग कौन से हैं ? १. व्यञ्जनोजित अंग, २. अर्थ समग्रांग, ३. तदुभय समग्रांग ३. कालाचारांग, ४. उपाधानाचारांग, ६. विनयाचार, ७. अनिवाचार, ८. बहुमानाचार । ६३. व्यञ्जनोजित अंग किसको कहते हैं ? स्वर, व्यञ्जन व मात्राओं आदि का शुद्ध उच्चारण करना । ६४. अर्थ समग्रांग किसको कहते हैं ? । शास्त्र की आवृत्ति मात्र न करके उसका अर्थ समझकर पढ़ना। ६५. तदुभय समग्रांग किसको कहते हैं ? अर्थ समझते हुए शुद्ध उच्चारण सहित पढ़ना । कालाचारांग किसको कहते हैं ? शास्त्र पढ़ने के योग्य काल में ही पढ़ना अयोग्य काल में नहीं। सवेर. सांझ व रात्रि के सन्धि कालों में, सूर्य चन्द्र ग्रहण में अथवा विद्रोह आदि के अवसर पर शास्त्र पढ़ना वजित है । सूर्योदय, सूर्यास्त, मध्यान्ह व मध्य रात्रि ये चार सन्धि काल हैं क्योंकि इनमें पूर्व दिन व उत्तर दिन का अथवा पूर्व रात्रि व उत्तर रात्रि का अथवा रात्रि व दिन का अथवा दिन व रात्रि का संयोग होता है। ६७. उपाधानांग किसको कहते हैं ? शारख पढ़ते हुए किसी से भी बात न करना, अथवा शास्त्र के अतिरिक्त अन्य लौकिक बातें न करना। ६८. अनिवांग किसको कहते हैं ? जिस गुरु से शारख पढ़ा हो उसका नाम कभी न छिपाना, भले आगे जाकर गुरु से भी अधिक ज्ञान क्यों न बढ़ जाये। ६६. बहुमानांग किसको कहते हैं ? ज्ञान के प्रति बहुमान व भक्ति रखना । ज्ञान प्राप्ति को अपना बड़ा भारी सौभाग्य मानना ।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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