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________________ -तत्वार्थ २६४ १-नव पदार्थाधिकार ही, पर भाव कर्म भी स्व पर को जानने में असमर्थ होने से अजीव ही हैं। १४. आस्रव कितने प्रकार का होता है ? दो प्रकार का-भावास्रव और द्रव्यास्रव । १५. भावात्रव किसको कहते हैं ? जीव के जिन परिणामों के निमित्त से द्रव्य कर्मों का आगमन जीव के प्रदेशों में हो जाये उन परिणामों को भावास्रव कहते हैं। १६. भावात्रव रूप जीव के परिणाम कौन से हैं ? तीन हैं-मन, वचन, व काय की क्रियायें या योग। १७. द्रव्यास्रव किसको कहते हैं ? भावास्रव के निमित्त से जो द्रव्य कर्मों का आगमन होता है, उसे द्रव्यास्रव कहते हैं। १८. बन्ध तत्व किसको कहते हैं ? कर्मों का जीव के प्रदेशों के साथ संश्लेष सम्बन्ध को प्राप्त हो जाना बन्ध है। बन्ध कितने प्रकार का होता है ? दो प्रकार का--भाव बन्ध व द्रव्य बन्ध । २०. भाव बन्ध किसको कहते हैं ? जीव के जिन रागादि भाव कर्मों या परिणामों के निमित्त से द्रव्य कर्म जीव के प्रदेशों से वन्धते हैं, उन परिणामों को भाव बन्ध कहते हैं अथवा जीव के उन संस्कारों या वासनाओं को भावबन्ध कहते हैं जिनके कारण उसे रागद्वेषादि करने की प्रेरणा मिलती है। २१. भाव बन्ध रूप जीव के परिणाम कौन से हैं ? पांच हैं-मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय व योग । (इन सबका विस्तृत कथन पहले किया जा चुका है)
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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