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________________ ५-गुणस्थान २५६ २-गुणस्थानाधिकार व्युच्छिन्न प्रकृति पांच के घटाने पर शेष रही ७६ प्रकृतियों का उदय रहता है (व्युच्छिन्न पांच-आहारक शरीर, आहारक अंगोपांग, निद्रा निद्रा, प्रचलाप्रचला, और स्त्यानगृद्धि)। (५६) सातवें गुणस्थान में सत्व कितनी प्रकृतियों का है ? छटे गुणस्थान की तरह इस गुणस्थान में भी १४६ प्रकृतियों की सत्ता रहती है, किन्तु क्षायिक सम्यग्दृष्टि के १३६ का ही सत्व है। (५७) आठवें गुणस्थान में बन्ध कितनी प्रकृतियों का होता है ? सातवें गुणस्थान में जो ५६ प्रकृतियों का बन्ध कहा है, उस में से व्युच्छिन्न प्रकृति एक देवायु के घटाने पर शेष रही ५८ का बन्ध होता है। (५८) आठवें गुणस्थान में उदय कितनी प्रकृतियों का होता है ? सातवें गुणस्थान में जो ७६ प्रकृतियों का उदय कहा है उनमें से व्युच्छिन्न प्रकृति चार घटाने पर शेष रही ७२ प्रकृतियों का उदय होता है। (व्यच्छिन्न चार = सम्यक्त्व प्रकृति, उर्द्ध नाराच, कीलित, असंप्राप्त सृपाटिका सहनन)।। (५६) आठवें गुणस्थान में सत्व कितनी प्रकृतियों का रहता है ? सातवें गुणस्थान में जो १४६ का सत्व कहा है, उनमें से व्युच्छित्ति प्रकति अनन्तानुबन्धी क्रोध मान माया लोभ इन चार को घटाकर द्वितीयोपशम सम्यग्दृष्टि उपशम श्रेणी वाले के तो १४२ का सत्व है । किन्तु क्षायिक सम्यग्दृष्टि उपशम श्रेणीवाले के दर्शनमोहनीय की तीन प्रकृति रहित १३६ का सत्व है, और क्षपक श्रेणीवाले के सातवें गुणस्थान की व्युच्छित्ति प्रकृति आठ घटाकर शेष १३८ प्रकृतियों का सत्व है । व्युच्छिति आठ = अनन्तानुबन्धी ४, दर्शनमोहनीय ३, और देवायु १)। (६०) नवमें अर्थात अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में कितनी प्रकृतियों का बन्ध होता है ? आठवे गुणस्थान में जो ५८ प्रकृतियों का बन्ध कहा है, उनमें
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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