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________________ २५७ २ - गुणस्थानाधिकार से व्युच्छित्ति प्रकृति ३६ को घटाने पर शेष रही २२ प्रकृति का बन्ध होता है । (व्युच्छित्ति की ३६ = निद्रा, प्रचला, तोर्थकर, निर्माण, प्रशस्त विहायोगति, पंचेन्द्रिय जाति, तैजस शरीर, कार्माण शरीर, आहारक शरीर, आहारक अंगोपांग, समचतुरस्र संस्थान, वैक्रियक शरीर, वैक्रियक अंगोपांग, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, अगुरुलघुत्व, उपघात, परघात, उच्छ्वास, तस, बादर, पर्याप्ति, प्रत्येक, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, हास्य, रति, जुगुप्सा, भय ) । ५- गुणस्थान (६१) नवमें गुणस्थान में उदय कितनी प्रकृतियों का होता है ? आठवें गुणस्थान में जो ७२ प्रकृतियों का उदय होता है, उनमें से व्युच्छित्ति प्रकृति ६ को घटाने पर शेष ६६ प्रकृतियों का उदय होता है । (व्युच्छित्ति की ६ = हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा) । (६२) नवमें गुणस्थान में सत्व कितनी प्रकृतियों का होता है ? आठवें गुणस्थान की तरह इस गुणस्थान में भी उपशम श्रेणी वाले द्वितीयोपशम सम्यग्दृष्टि के १४२, क्षायिक सम्यग्दृष्टि के १३६ और क्षपक श्र ेणीवाले के १३५ का ही सत्व है । (६३) दशवें सूक्ष्म साम्पराय गुणस्थान का स्वरूप क्या है ? अत्यन्त सूक्ष्म अवस्था को प्राप्त लोभ कषाय के उदय को अनुभव करते हुए जीव के सूक्ष्म साम्पराय नामका दशवां गुणस्थान होता है । (६४) दश गुणस्थान में बन्ध कितनी प्रकृतियों का होता? है ? नवमें गुणस्थान में जो २२ प्रकृतियों का बन्ध होता है, उनमें से व्युच्छित्ति प्रकृति पांच को घटाने पर शेष रही १७ प्रकृतियों का बन्ध होता है । ( व्युच्छित्ति की पांच = पुरुष वेद, संज्वलन क्रोध मान माया लोभ ) | (६५) दशवं गुणस्थान में उदय कितनी प्रकृतियों का है ? नवमें गुणस्थान में जो ६६ प्रकृतियों का उदय होता है, उन
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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