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________________ ५-गुणस्थान १-गुणस्थानाधिकार (४८) क्षपक श्रेणी में कौन से गुणस्थान हैं ? चार हैं-आठवां, नवमां, दशवां व बारहवां । (४६) चारित्र मोहनीय की २१ प्रकृतियों को उपशमावने तथा क्षय करने के लिये आत्मा के कौन से परिणाम निमित्त कारण हैं ? तीन हैं-अधःकरण, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण । (५०) अधःकरण किसको कहते हैं ? जिस करण में (परिणाम समूह में) उपरितन समववर्ती तथा अधस्तन समपवर्ती जीवों के परिणाम सदृश तथा विसदृश हों उसको अधः करण कहते हैं । यह अधःकरण सातवें गुणस्थान में होता है। (५१) अपूर्वकरण किसको कहते हैं ? जिस करण में उत्तरोत्तर अपूर्व ही अपूर्व परिणाम होते चले जावे अर्थात् भिन्न समयवर्ती जीवों के परिणाम सदा विसदृश ही हों और एक समयवर्ती जीवों के परिणाम सदृश भी हो, उनको अपूर्वकरण कहते हैं । यही आठवां गुणस्थान है। (५२) अनिवृत्तिकरण किसको कहते हैं ? जिस करण में भिन्न समयवर्ती जीवों के परिणाम विसदृश ही हों और एक समयवर्ती जीवों के परिणाम सदृश ही हो उसको अनिवृत्तिकरण कहते हैं। यही नवमा गुणस्थान हैं। (५३) अधःकरण का दृष्टान्त क्या है ? देवदत्त नाम के राजा के ३०७२ आदमी जो कि सोलह महकमों में बंटे हुए हैं। सेवक हैं। महकमा नं १ में १६२ हैं, नं० २ में १६६, नं० ३ में १७०, नं० ४ में १७४, नं. ५ में १७८, नं० ६ में १८२, नं० ७ में १८६, नं० १६०, नं०६ में १६४, नं० १० में १६८, नं० ११ में २०२, नं० १२ में २०६, नं० १३ में २१०, नं० १४ में २१४, नं. १५ में २१८ और नं, १६ में २२२ आदमी काम करते हैं। पहले महकमें में १६२ आदमियों में से पहले आदमी का वेतन
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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