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________________ २५३ ५-गुणस्थान २- गुणर थानाधिकार में आवे जावे, उसको स्वस्थान अप्रमत्त कहते हैं । (४०) सातिशय अप्रमत्त विरत किसको कहते हैं ? जो श्रेणी चढ़ने के सम्मुख हो उसको सातिशय अप्रमत्त कहते है। (४१) श्रेणी चढ़ने का पात्र कौन ? क्षायिक सम्यग्दृष्टि और द्वितीयोपशम सम्यग्दृष्टि ही श्रेणी चढ़ते हैं । प्रथमोपशम सम्यक्त्व वाला प्रथमोपशम सम्यक्त्व को छोड़ कर क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि होकर प्रथम ही अनन्तानुबन्धी क्रोध मान माया लोभ का विसयोजन करके दर्शनमोहनीय की तीन प्रकतियों का उपशम करके या तो द्वितीयोपशम सम्यग्दृष्टि हो जाये, अथवा इन तीनों प्रकतियों का क्षय करके क्षायिक सम्यग्दृष्टि हो जाये, तब श्रेणी चढ़ने का पात्र होता है। (४२) श्रेणी किसको कहते हैं ? जहां चारित्र माहनीय की शेष रही इक्कीस प्रकृतियों का क्रम से उपशम तथा क्षय किया जाये उसको श्रेणी कहते है । (४३) श्रेणी के कितने भेद हैं ? दो--उपशम श्रेणी और क्षपक श्रेणी। (४४) उपशम श्रेणो किसको कहते हैं ? जिसमें चारित्र मोहनीय की इक्कीस प्रकृतियों का उपशम किया जाये। (४५) क्षपक श्रेणी किसको कहते हैं ? जिसमें उक्न इक्कीस प्रकृतियों का क्षय किया जाये। (४६) इन दोनों श्रेणियों में कौन कौन से जीव चढ़ते हैं ? क्षायिक सम्यग्दृष्टि तो दोनों ही श्रेणी चढता है, और द्वितीयोप शम सम्यग्दृष्टि उपशय श्रेणो ही चढ़ता है, क्षपक श्रेणी नहीं चढ़ता। (४७) उपशम श्रेणी के कौन कौन गुणस्थान हैं ? चार हैं-आठवां, नवमां दसवां, ग्यारहवां ।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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