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________________ २३६ ४-भाव व मार्गणा ४-लोकाधिकार की तरफ उत्तर कुरु और दक्षिण की तरफ देवकुरु (नाम उत्तम भोगभूमिये) हैं। ___ जम्बू द्वीप के चारों तरफ खाई की तरह बेढ हुए दो लाख योजन चौड़ा लवण समुद्र है। लवण समुद्र का चारों तरफ से बेढ़ हुए चार लाख योजन चौड़ा धातुकी खण्ड है । इस धातुकी खण्ड द्वीप में दो मेरु पर्वत हैं और क्षेत्र कुलाचलादि की रचना (सब) जम्बू द्वीप से दूनी है। धातुकी खण्ड को चारों तरफ से बेढे हुए आठ लाख योजन चौड़ा कालोदधि समुद्र है । और कालोदधि को बेढे हुए सोलह लाख योजन चौड़ा पुष्कर द्वीप है । पुष्कर द्वीप के बीचोबीच वलय के आकार, चौड़ाई पृथिवी पर एक हजार बाईस योजन, बीच में सात सौ तेईस योजन, ऊपर चार सौ चौबीस योजन, ऊंचा सतरह सौ इकईस योजन और जमीन के भीतर चारसौ सवातीस योजन जिसकी जड़ है, ऐसा मानुषोत्तर नामा पर्वत पड़ा हुआ है, जिससे पुष्कर द्वीप के दो खण्ड हो गए हैं। पुष्कर द्वीप के पहिले अर्ध भाग में जंबू द्वीप से दूनी दूनी अर्थात धातकी खंड के बराबर सब रचना है। जम्बू द्वीप, धातकी खण्ड और पुष्करार्द्ध द्वीप तथा लवणोदधि समद्र और कालोदधि समुद्र इतने (ढाई द्वीप प्रमाण) क्षेत्र को नरलोक कहते हैं। पूष्कर द्वीप से आगे परस्पर एक दूसरे को बेढ़े हुए दूने दूने विस्तार वाले मध्य लोक के अन्त पर्यन्त द्वीप और समुद्र है। पांच मेरु सम्बन्धी पाँच भरत, पांच ऐरावत, देवकुरु व उत्तर कुरु को छोड़कर पांच विदेह इस प्रकार सब मिलकर १५ कर्म भूमि हैं। पांच हैमववत और पांच हैरण्यवत् इन दश क्षेत्रों में जघन्य भोग भूमि है। पांच हरि और पांच रम्यक इन दश क्षेत्रों में मध्यम भोग भूमि है। पांच देव कुरु और पाँच उत्तर कुरु इन दश क्षेत्रों में उत्तम भोग भमि है जहां पर असि
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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