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________________ २४० ४-भाव व मार्गणा ४- लोकाधिकार मसि कृषि सेवा शिल्प और वाणिज्य इन षट् कर्मों की प्रवृत्ति हो उसको कर्म भूमि कहते हैं। जहां इनकी प्रवृत्ति न हो उसको भोग भूमि कहते हैं। मनुष्य क्षेत्र से बाहर के समस्त द्वीपों में जघन्य भोगभूमि की सी रचना है, किन्तु अन्तिम स्वयम्मू रमण द्वीप के उत्तरार्द्ध में तथा समस्त स्वयम्मूरमण समुद्र में और चारों कोनों की पथिवियों में कर्मभूमिकीसी रचना है । लवण समुद्र और कालोदधि समुद्र में ६६ अन्तर्वीप हैं, जिनमें कुभोगभूमि की रचना है । वहां मनुष्य ही रहते हैं। उनमें मनुष्यों की आकृतियें नाना प्रकार की कुत्सित हैं। प्रश्नावली १. लक्षण करो- मार्गणा, उपयोग, निर्वृत्ति इन्द्रिय, विग्र; गति, निगोद जीव, जोव समास, संज्ञा, साधारण शरीर २. भेद प्रभेद दर्शाओ-जीव के भाव, मार्गणा, लोक । ३. क्या अन्तर है-पारिणमिक भाव व क्षायिक भाव, बादर व सक्ष्म, नित्य निगोद व इतर निगोद, सप्रतिष्ठित प्रत्येक वसाधारण । ४. सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति का लक्ष्य, चिन्हव रचना बताओ ५. किसी साधारण वनस्पति का नाम बताओ। ६. प्रत्येक साधारण आदि में से किस जाति के शरीर हैं मछली, गोभी, घिया, गन्ने की गांठ, बेल की टहनी, आलू, पत्ता, फूल, टमाटर, गांठ गोभी, आपका शरीर, तीर्थकर व केवली का शरीर। ७. जीव समास के भेद प्रभेद दर्शाओ। ८. किस जन्म वाले जीव हैं—मनुष्य, चिड़िया, सर्प, मछली, मक्षिका, देव, गाय, हिरण, वृक्ष । ६. नरक व स्वर्ग कितने कितने हैं, उनके नाम बताओ। १०. लोक में कहां कहां रहते हैं-उदधिकुमार, पिशाच, राक्षस, असुरकुमार, कल्पातीत देव । ११. इन्द्रियों के भेद प्रेभेदों का चार्ट बनाओ।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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