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________________ ४-भाव व मार्गणा २३५ ३-जन्म व जीव समास पर्याप्तक व लब्ध्य पर्याप्तक की अपेक्षा से १८ भेद हुए। (१६) गर्भज पंचेन्द्रिय के १६ भेद कौन कौन से हैं ? कर्मभूमि के १२ और भोगभूमि के ४।। (१७) कर्म भ मि के १२ भेद कौन कौन से हैं ? जलचर, नभचर, थलचर इन तीनों के सैनी असैनी के भेद से ६ भद हुए और इनके पर्याप्त व निवृत्त्यपर्याप्त की अपेक्षा से १२ भद हुए। (१८) भोगभ मि के चार भेद कौन कौन से हैं ? थलचर और नभचर इनके पर्याप्त और निवृत्त्यपर्याप्त की अपेक्षा ४ भेद हुए । भोग भूमि में असैनी (व जलचर) तिर्यच नहीं होते। (१६) मनुष्यों के नौ भेद कौन कौन से हैं ? आर्यखण्ड, म्लेच्छखण्ड, भोगमि और कुभोगभूमि इन चारों गर्भजे के पर्याप्तक व निवृत्त्यपर्याप्तक की अपेक्षा ८ भेद हुए। इनमें सम्मृर्छन मनुष्य का लब्ध्यपर्याप्तक भेद मिलाने से ६ भेद होते हैं। (२०) नारकियों के दो भेद कौन कौन से हैं? पर्याप्तक और निवृत्त्यपर्याप्तक । (२१) देवों के दो भेद कौन कौन से हैं ? पर्याप्तक और निवृत्त्यपर्याप्तक । (२२) देवों के विशेष भेद कौन कौन से हैं ? चार हैं--भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक । (२३) भवनवासो देवों के कितने भेद हैं ? दश हैं --- असुरकुमार, नागकुमार, विघुत्कुमार, सुपर्णकुमार, अग्निकुमार, वातकुमार, स्तनितकुमार, उदधिकुमार, द्वीपकूमार और दिपकूमार । (२४) व्यन्तरों के कितने भेद हैं ? आठ हैं--किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गन्धवं, यक्ष, राक्षस, भूत व पिशाच ।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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