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________________ ४-माव व मार्गणा २३० २-मागंणाधिकार (७२) संयम मार्गणा के कितने भेद हैं ? सात हैं-सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहार विशुद्धि, सूक्ष्म साम्पराय, यथाख्यात, संयमासयम, संयम (विशेष देखो अध्याय २ अधिकार ४). (७३) दर्शनमार्गगा के कितने भेद हैं ? चार हैं-चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन, केवलदर्शन (विशेष देखो अध्याय २ अधिकार ४). (७४) लेश्या किसको कहते हैं ? कषाय के उदय करके अनुरंजित योगों की प्रवृत्ति को भावलेश्या कहते हैं, और शरीर के पीत पद्मादि वर्णों को द्रव्य लेश्या कहते हैं। (७५) लेश्या के कितने भेद हैं ? छ: भेद हैं-कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पद्म, शुक्ल । ७६. कषाय, वासना व लेश्या में क्या अन्तर है ? (देखो पीछे अध्याय ३ अधिकार १) (७७) भव्य मार्गणा के कितने भेद हैं ? दो हैं.-भव्य, अभव्य । (विशेष देखो अध्याय २ अधिकार ४) (७८) सम्यक्त्व किसको कहते हैं ? तत्वार्थ श्रद्धान को सयम्क्त्व कहते हैं। (विशेष देखो अध्याय दो अधिकार ४) (७६) सम्यक्त्व मार्गणा के कितने भेद हैं ? छह भेद हैं-उपशम सम्यक्त्व, क्षयोपशम सम्यक्त्व, क्षायिक सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सासादन, मिथ्यात्व । (८०) संज्ञी किसको कहते हैं ? जिसमें संज्ञा हो उसे संजी कहते हैं। (८१) संज्ञा किसको कहते हैं ? (पहिले आहारादि की अभिलाषा को संज्ञा कहा है, यहां संज्ञी
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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