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________________ ४--भाव व मार्गणा २३१ २-मार्गणाधिकार का प्रकरण होने से) द्रव्य मन आदि द्वारा शिक्षा ग्रहण करने को संज्ञा कहते हैं। (८२) संज्ञी मार्गणा के कितने भेद हैं ? दो हैं-संज्ञी, असंज्ञी। (८३) आहारक किसको कहते हैं ? औदारिक आदि शरीर और पर्याप्ति के योग्य पुद्गलों के ग्रहण करने को आहार कहते हैं। (८४) आहारक मार्गणा के कितने भेद हैं ? दो हैं-आहारक अनाहारक । (८५) अनाहारक जीव किस किस अवस्था में होते हैं ? विग्रह गति और किसी किसी समुद्धात में व अयोग केवली अवस्थायें जीव अनाहारक होता है । ८६. आहार कितने प्रकार के होते हैं ? कई प्रकार का होता है, जैसे कवलाहार, नोकर्माहार, कर्मा हार, लेपाहार, उष्माहार । ८७. कवलाहार आदि में क्था अन्तर है ? मखद्वार से ग्रास के रूप में ग्रहण किया जाने वाला सर्व परिचित कवलाहार है। योगों व उपयोग के कारण नोकर्म व कर्म वर्गणाओं का ग्रहण नोकर्माहार व कमीहार है । तेल मालिश आदि लेपाहार है ओर अण्डे को मुर्गी के शरीर की गर्मी से जो स्वयं पहुँचता रहता है वह उष्माहार है। ८८. केवली अनाहारकों को कौन सा आहार नहीं होता? कोई सा भी नहीं होता। ८६. केवली भगवान को कौन सा आहार नहीं होता? कवलाहार, लेपाहार व उष्माहार नहीं होता, कर्माहार व नो कर्माहार होता है, क्योंकि वह सब जीवों को सामान्य है । (९०) विग्रह गति में कौन सा योग होता है ? कार्माण काय योग।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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