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________________ ४-भाव व मार्गणा २२६ २-मार्गणाधिकार (५२) इतर निगोद किसको कहते हैं ? जो निगोद से निकलकर दूसरी पर्याय पाकर पुनः निगोद में चला गया वह जीव इतर निगोद कहलाता है। ५३. निगोद में कितने जीव बसते हैं ? प्रधानता से देखा जाय तो संसार के जीवों की अखिल राशि निगोद में ही बसती है। इसका कारण यह है कि लोक में अनन्तों निगोद शरीर हैं । तहां एक-एक शरीर में समस्त व्यवराशिगत त्रस व स्थावर जीवों से अनन्त गुणे जीव निवास करते हैं। ५४. वनस्पति कितने प्रकार की है ? १. स्कन्ध से उगने वाली जैसे आलू अदरख । २. टहनी से उगने वाली जैसे गुलाब व आकाश बेल । ३. पत्ते से उगने वाली जैसे पत्थर चट । ४. पोरी से उगने वाली जैसे गत्रा। ५. बीज से उगने वाली जैसे गेहूँ आदि। ६. स्वयं उगने वाली-जैसे खूमी, सांप की छतरी, काई आदि। ५५. इन सर्व वनस्पतियों में से सप्रतिष्ठित कौनसी हैं ? (क) अत्यन्त कचिया हालत में सभी वनस्पति सप्रतिष्ठित होती हैं; अर्थात जब तक वनस्पति में नसे, धारी, फाड़, बीज, गुठली, जाली, रेशा आदि नहीं पड़ जाते तब तक वह सप्रतिष्ठित रहती है। जैसे-कोंपल, अत्यन्त छोटी अम्मी, उंगली जितनी बड़ी ककड़ी, तोरी, घिया आदि । ऐसी वनस्पति पक जाने पर अर्थात् बड़ी हो जाने पर अप्रतिष्ठित हो जाती हैं। (ख) जो वनस्पति कटने के पश्चात भी उग सके वह सप्रति ष्ठित ही होती हैं. जैसे—आल, बेल की उगने वाली शाख, पत्थर चट का पत्ता आदि ।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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