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________________ २२७ २- मार्गणाधिकार (ग) कुछ वनस्पतियें पक कर अर्थात बड़ी हो जाने पर भी प्रतिष्ठित ही रहती हैं । जैसे- कन्दमूल, गन्ने की पोरी, खम्मी, सांप की छतरी, सब प्रकार के पुष्प आदि । ४- भाव व भागणा (घ) तीर्थकरों व केवलियों को छोड़कर सभी मनुष्यों के तथा तस तिर्यचों के शरीर सप्रतिष्ठित ही होते हैं । ५६. सप्रतिष्ठित प्रत्येक व साधारण वनस्पति में क्या अन्तर है ? प्रतिष्ठित वनस्पति तो अपनी स्वतंत्र सत्ता रखती है जैसे आलू आदि । परन्तु साधारण बादर वनस्पति की कोई स्वतंत्र सत्ता नहीं है । वह नियम से प्रत्येक वनस्पति के आश्रय ही रहती है, और उसका आश्रयभूत होने के कारण वह वनस्पति सप्रतिष्ठित कहलाती है। ५७ साधारण वनस्पति प्रत्येक के आश्रय किस प्रकार रहती है, क्या शरीर में रहने वाले कीट क्रमियों वत् ? नहीं, शरीर में रहने वाले कमियों के अपने अपने स्वतंत्र शरीर हैं, परन्तु साधारण वनस्पति के अपने-अपने स्वतंत्र शरीर नहीं होते । तहां अनन्तों जीवों का एक साझला शरीर होता है, और ऐसे असंख्यातों शरीर सप्रतिष्ठित प्रत्येक के भीतर ठसाउस भरे रहते हैं । वे हिल डुल भी नहीं सकते हैं । सूक्ष्म होने से वे उस सुप्रतिष्ठित प्रत्येक से पृथक इन्द्रियगोचर नहीं होते । ५८. साधारण शरीर कैसा होता है ? उसकी पृथक सत्ता न होने के कारण वह देखा या दिखाया नहीं जा सकता । ५६. किसी साधारण वनस्पति का नाम बताओ । लोक में कोई भी साधारण वनस्पति ऐसे नहीं जो हमारे तुम्हारे व्यवहार में आती हो । अतः उसका कोई नहीं है । सूक्ष्म साधारण वनस्पति तो लोक में सर्वत्र ठसाठस भरी हुई
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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