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________________ ३-कर्म सिद्धान्त १-खाधिकार (१४६) नोच गोत्र कर्म किसको कहते हैं ? जिस कर्म के उदय से नीच गोत्र (कुल) में जन्म हो। (१५०) अन्तराय कम किसको कहते हैं ? जो दानादि में विघ्न डाले। (१५१) अन्तराय कर्म के कितने भेद हैं ? पांच-दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोपान्तराय और वीर्यान्तराय ३ (२. पुण्य पाप आदि प्रकृति विभाग) (१५२) पुण्य कर्म किसको कहते हैं ? जो जीव को इष्ट वस्तु की प्राप्ति करावे । (१५३) पाप कर्म किसको कहते हैं ? जो जीव को अनिष्ट वस्तु की प्राप्ति करावे । {१५४) घातिया कर्म किसको कहते हैं ? जो जीव के ज्ञानादिक अनुजीवी गुण को घाते उसको घातिया कर्म कहते हैं। (१५५) अघातिया कर्म किसको कहते हैं ? जो जीव के ज्ञानादि अनुजीवी गुण को न पाते (प्रतिजीवी गुण को घाते अथवा शरीर व इसके साधनों का सम्पादन करे)। (१५६) सर्वघाती कर्म किसको कहते हैं ? जो जीव के अनुजीवी मुणों को पूरे तौर से पाते। (१५७) देश घाती कर्म किसको कहते हैं ? जो जीव के अनुजीवी मुणों को एक देश पाते उसको देशघाती कर्म कहते हैं। १५८. पूरे घात व एक देश घात से क्या समझे ? गुण की झलक मात्र भी ब्यक्त न हो सो सर्वघात है, जैसे हमें तुम्हें केवल ज्ञान या मनः पर्यय ज्ञान की झलक मात्र भी नहीं है। गुण का कुछ अंश व्यक्त रहे, भले ही वह अत्यल्प हो; जैसे कि सूक्ष्म निगोदिया तक में मति ज्ञान का कुछ न कुछ अंश व्यक्त रहता, सो देशघात है ।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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