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________________ ३-कर्म सिद्धान्त १९४ १-बन्धाधिकार स्त्री पुरुषों के दुर्भाग्य को उत्पन्न करने वाला शरीर हो, वह दुर्भग नाम कर्म है। (१३६) आदेय नाम कर्म किसको कहते हैं ? जिस कर्म के उदय से कान्ति (प्रभा) युक्त शरीर उपजे उसको आदेय नाम कर्म कहते हैं। (१४०) अनादेय नाम कर्म किसको कहते हैं ? जिस कर्म के उदय से कान्ति (प्रभा) युक्त शरीर न हो उसको अनादेय नाम कर्म कहते हैं। (१४१) सुस्वर नाम कर्म किसे कहते हैं ? जिसके उदय से अच्छा स्वर हो उसको सुस्वर नाम कर्म कहते हैं। (१४२) दुस्वर नाम कर्म किसको कहते हैं ? जिस कर्म के उदय से अच्छा स्वर न हो उसको दुस्वरनामकर्म कहते हैं। (१४३) यशः कीति नाम कर्म किसको कहते हैं ? जिस कर्म के उदय से संसार में जीव का यश हो उसे यश: कीति नाम कर्म कहते हैं। (१४४) अयशः कीति नाम कर्म किसको कहते हैं ? जिस कर्म के उदय से संसार में जीव की तारीफ न होवे उसको अयशः कीति नाम कर्म कहते हैं। (१४५) तीर्थंकर नाम कर्म किसको कहते हैं ? अर्हन्त पद के कारणभूत कर्म को तीर्थकर नाम कर्म कहते हैं । (१४६) गोत्र कर्म किसे कहते हैं ? जिस कर्म के उदय से सन्तान के क्रम से चले आये जीव के आचरण रूप उच्च नीच कुल में जन्म हो । (१४७) गोत्र कर्म के कितने भेद हैं ? दो भेद हैं-उच्च गोत्र और नीच गोत्र । (१४८) उच्च गोत्र कर्म किसको कहते हैं ? जिस कर्म के उदय से उच्च गोत्र (कुल) में जन्म हो।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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