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________________ ३-कर्म सिद्धान्त १६३ १-बन्धाधिकार (१३१) प्रत्येक नाम कर्म किसको कहते हैं ? जिस कर्म के उदय से एक शरीर का स्वामी एक ही जीव हो उसको प्रत्येक नाम कर्म कहते हैं (जैसे मनुष्य आदि)। (१३२) साधारण नाम कर्म किसको कहते हैं ? जिस कर्म के उदय से एक शरीर के अनेक जीव स्वामी हों, उसको साधारण नाम कर्म कहते हैं। १३३. प्रत्येक व साधारण शरीर को विशदता से समझाओ। (देखो आगे अध्याय ४ अधिकार २ में काय मार्गणा) (१३४) स्थिर और अस्थिर नाम कर्म किसको कहते हैं ? जिस कर्म के उदय से शरीर के धातु उपधातु अपने अपने ठिकाने रहें, उसको स्थिर नाम कर्म कहते हैं; और जिस नाम कर्म के उदय से शरीर के धातु उपधातु अपने अपने ठिकाने न रहें, उसको अस्थिर नाम कर्म कहते हैं। (१३५) शुभ नाम कर्म किसको कहते हैं ? जिस कर्म के उदय से शरीर के अवयव सुन्दर हों उसको शुभ नाम कर्म कहते हैं । (अथवा चक्रवर्ती बलदेव आदि के सूचक चिन्ह व अंगोपांग युक्त शरीर होवे सो शुभ है)। (१३६) अशुभ नाम कर्म किसको कहते हैं ? जिसके उदय से शरीर के अवयब सुन्दर न हों उसको अशुभ नाम कर्म कहते हैं । (अथवा शुभ से विपरीत लक्षणों वाला अशुभ है)। (१३७) सुभग नाम कर्म किसको कहते हैं ? जिस कर्म के उदय से अन्यजन प्रीतिकर अवस्था हो, अथवा स्त्री पुरुषों के सौभाग्य को उत्पन्न करने वाला शरीर हो, वह सुभग नाम कर्म है। (१३८) दुर्भग नाम कर्म किसको कहते हैं ? जिस कर्म के उदय से अन्यजन अप्रीतिकर अवस्था हो, अथवा
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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