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________________ ३-कर्म सिद्धान्त १-बन्धाधिकार ८. द्रव्य कर्म किसे कहते हैं ? राग द्वेषादि के निमित्त से जो सूक्ष्म कार्माण वर्गणायें जीव के साथ बंधती हैं, और जो ज्ञानावरणीय आदि अनेक रूप होती हुई कार्माण शरीर का निर्माण करती हैं, उसे द्रव्य कर्म कहते हैं। ६. द्रव्य कर्म का बन्धना क्या? कार्माण वर्गणाओं का विशेष प्रवृत्तियों आदि को धारण करके जीव प्रदेशों के साथ दूध पानी एकमेक हो जाना ही उनका संश्लेष बन्ध है। (१०) बन्ध के कितने भेद हैं ? चार भेद हैं-प्रकृति बन्ध, प्रदेश बन्ध, स्थिति बन्ध व अनुभाग बन्ध । (११) इन चारों प्रकार के बन्धों का कारण क्या है ? प्रकृति व प्रदेश बन्ध योग से होते हैं और स्थिति व अनुभाग बन्ध कषाय से। १२. बन्ध के कारणों में योग व कषाय का विभाग करो। प्रकृति व प्रदेश बन्ध द्रव्यात्मक व प्रदेशात्म होने से उस का कारण भी प्रदेशात्मक होना चाहिये और वह जीव का योग है। स्थिति व अनुभाग भावात्मक परिणमन रूप होने से इसका कारण भी भावात्मक ही होना चाहिये और वह जीव का उपयोग या कषाय है। (१३) प्रकृति बन्ध किसको कहते हैं ? मोहादि जनक तथा ज्ञानादि घातक तत्तत्स्वभाव वाले कार्माण पुद्गल स्कन्धों का आत्मा से सम्बन्ध होने को प्रकृतिबन्ध कहते हैं। (१४) प्रकृति बन्ध के कितने भेद हैं ? आठ हैं-ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र. अन्तराय।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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